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वस्त्रों में हूं लेकिन वस्त्र नहीं हूं मैं। 'जब तुम उपलब्ध कर लेते हो इसे-और मैं कहता हूं 'उपलब्ध' क्योंकि बौद्धिक रूप से तो तुम इसे पहले से ही जानते हो, बात उसकी नहीं; तुमने इसका संपूर्ण अनभव ही नहीं किया है; जब तुम पूरी तरह समझते हो भूख पर गहरा ध्यान देते हए, या कि कामवासना पर ध्यान देते हुए, या किसी भी चीज पर-जब तुम करते हो स्पष्ट अनुभव, तो अचानक शरीर
और आत्मा के बीच का वह सेतु तिरोहित हो जाता है। जब वहां अंतराल होता है और तुम बन चुके होते हो साक्षी, तब शरीर जीवित रहता है तुम्हारे सहयोग द्वारा।
शरीर नहीं जी सकता बिना तुम्हारे सहयोग के। यही तो घटता है जब शरीर मरता है : शरीर तो बिलकुल वही होता है, केवल अब तुम्हारा सहयोग न रहा। तुम चले गये हो घर से बाहर और इसीलिये शरीर मर गया है। अन्यथा, कोई कभी मरता नहीं। शरीर वही होता है, पर शरीर निर्भर करता था तुम्हारी ऊर्जा पर। निरंतर, तुम्हें शरीर को ऊर्जा का भोजन देना होता है। यह बना रहता है तुम्हारे सहयोग द्वारा ही; इसकी अपनी कोई सत्ता नहीं। ऐसा तुम्हारे द्वारा ही हुआ है कि यह साथ-साथ है, वरना तो यह अलग हो गया होता। तुम इसमें केंद्रीय तथा निश्चित ठोस रूप देने वाले कारक हो।
जब भूख में, यदि कोई ध्यान देता है भूख पर, तब सहयोग नहीं होता। यह एक अस्थायी मृत्यु होती है। तुम शरीर का पोषण कर सहारा नहीं दे रहे होते हो। जब तुम नहीं बढ़ावा दे रहे होते हो शरीर को, तो शरीर कैसे भूख अनुभव कर सकता है? शरीर कुछ अनुभव नहीं कर सकता; अनुभूति होती है तुम्हारे अस्तित्व की। हो सकता है कि भूख वहां हो शरीर में लेकिन शरीर अनुभव नहीं कर सकता है, उसके कोई स्पर्शबोधक नहीं होते।
अब, मात्र कछ दशकों के भीतर ही, मस्तिष्क के शल्य-चिकित्सक एक
ही, मस्तिष्क के शल्य-चिकित्सक एक बहत रहस्यमय घटना के प्रति सजग हो गये हैं कि मस्तिष्क, जो अनुभव करता है हर चीज, स्वयं में कोई अनुभूति नहीं होती उसकी। तुम पूरी तरह जानते हुए लेट सकते हो ब्रेन-सर्जन की मेज पर, तुम्हारा सिर खोला जा सकता है और वह काट सकता है तुम्हारे मस्तिष्क की अति सूक्ष्म नसें, तो भी तुम्हें कुछ महसूस न होगा। किसी बेहोशी की कोई जरूरत नहीं। वह खिड़की बना सकता है सिर में, वह सिर में एक सुराख बना सकता है, लेकिन तुम सुराख बनते जाने को अनुभव करोगे मात्र खोपड़ी पर। एक बार वह पहुंच जाता है भीतर तो कोई अनुभूति बिलकुल नहीं होती वहां। यदि वह तुम्हारा पूरा मस्तिष्क भी काट दे तो तुम्हें पता नहीं चलेगा, और तुम होओगे पूरी तरह जागे हए।
पश्चिम में बहुत लोग जी रहे हैं मस्तिष्क के बहुत सारे हिस्सों को अलग करवा कर, और वे इसे जानते नहीं। बहुत लोग जी रहे हैं अपने मस्तिष्क में निश्चित इलेक्ट्रोड, विद्युत-उपकरण जुड़वाए हुए
और उन्हें पता ही नहीं होता। वे अनुभव नहीं कर सकते इलेक्ट्रोड्स को। एक पत्थर तुम्हारे सिर के भीतर रख दिया जा सकता है और तुम कभी अनुभव नहीं करोगे कि वह वहां है, क्योंकि मस्तिष्क में कोई अनुभूति ही नहीं। तो कहां से आती होगी अनुभूति?