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ममोकार
श्री वृक्षशंख सरोज स्वस्तिक, शक्तिचकसरोवरो। चमर सिंहासन छत्रतोरण, रंगपति नारी नरो॥ सायर विवायरकल्पबेली, कामधेनुध्वजाकरी । वरयनमानकमान कमल, फलश करछपकेहरी॥ गंगा गौ वस्त गरुड़ गोपुर, वेण वीणा वीजमा। जगमीन महल मृदंगमाला रत्न हीपेन्द्यना ॥ नागेन्द्र भवन विमान अंकुश वृक्षसिद्वारथसही । भूषण पटवर हट्ट हाटक, चन्द्रचूडामणि महा॥ जम्मू तरोवर नयन सुबश बाग जन मम भावना । नौ निधि नक्ष सुमेर सारव सालवन्त सुहावना । प्रहमंगलाष्टक प्रातिहार्य प्रमुख और विराजहि ।
परमित अठोत्तर सहस प्रभु के अंग लक्षण साजहि ॥ अर्थात्-१-श्री वृक्ष, २- शंख, ३-सरोज अर्थात् कमल, ४-स्वस्तिक, ५-शक्ति, ६-चक्र, ७---सरोवर अर्थात् तालाब. ५-- चंवर, ६-सिंहासन, १०-छत्र, ११ --तोरण, १२तुरग पर्थात् घोड़ा, १३--नारी, १४-नर, १५– सायर अर्थात् समुद्र, १६ -दिवाकर यानी सूर्य १७-कल्पवेल, १८- कामधेनु १६.--ध्वजा, २०-हाथी, २१–बरबञ्ज, २२-बाण, २३ - कमान २४०-कमल, २५–कलश, २६- कच्छप, २७–केहरि पर्यात् सिंह, २८-गंगा, २६-वृषभ यानी बैल, ३०-गरुड़, ३१ --गोपुर ३२-वेणु, ३३-वीणा, ३४-चिजणा अर्थात् पंखा, ३५ -- युगमीन, ३६
इल, ३७-मृदंग, ३८-माला, ३६-रत्नदीप ४०--नागेन्द्र, ४१-भवन, ४२-विमान, ४३- अंकुश, ४४-सिद्धार्थ वृक्ष, ४५-भूषण, ४६–पटम्बर, ४७-हट्ट, हाट, ४८-चन्द्र, ४६चूड़ामणि, ५०-जम्बूवृक्ष ५१ --बाग, ५२-नौनिधि, ५३-नक्षत्र, ५४-सुमेरू, ५५-शारद, ५६शालि-खेत ५७-घन्टा, ५०-दर्पण ५६-भामन्डल, ६० प्रशोकवृक्ष इत्यादि बहिरंग १००८ लक्षण भगवान् के अंग में विरामान होते हैं। केवल-ज्ञान के उत्पन्न होने पर १० प्रतिशय प्रकट होते हैं, वे इस प्रकार हैं
वोहा--योजन एक शत में सुमिष, गगन गमन मुख चार ।
नहि प्रवया उपसर्ग नहि, नाहीं, कंवलाहार ।। सब ईश्वर विद्यापनों, नाहीं बढे नख केश ।
प्रनिमिष दग छाया रहित व केवल के वेश ॥२।। भावार्थ-(१) जहाँ मिनेन्द्र भगवान् समवशरणादि वाय विभूति सहित विराजते हैं वहाँ से शत-शत योजन चारों ओर अर्थात् पार सौ कोस तक दुभिक्षता रहित सभी जीवों को आनन्दकारी दशों दिशाओं में सुभिक्ष प्रवर्तता है।
(२) जिनेन्द्र भगवान् का केवल-शान होने के बाद पृथ्वी पर गमन नहीं होता। षट्काय के जीवों की बाधा रहित माकाश में ही गमन होता है।