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णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन
आगमों में संग्रथित तत्त्वों और रहस्यों को विस्तृत रूप में समीचीनतया जानने का सुअवसर जिज्ञासुओं, अध्येताओं तथा पाठकों को प्राप्त हो, इस हेतु आगमों पर आचार्यों, मुनियों और विद्वानों ने व्याख्यामूलक साहित्य की रचना की। वह साहित्य रचनाकारों की अपनी-अपनी रुचि और शैली की दृष्टि से संक्षिप्त, विस्तृत आदि अनेक रूपों में विरचित है। मुख्यतया वह निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका तथा टब्बा आदि के रूप में प्राप्त है ।
निर्युक्ति
निर्युक्ति का अर्थ युक्तिपूर्वक मूल आगमों के विषय का विवेचन है। नियुक्तियों की रचना प्राकृत गाथाओं में हुई। विस्तृत विषय को बोड़े शब्दों में कहने में गद्य की अपेक्षा पद्म में अधिक अनुकूलता होती है । पद्यों को आसानी से स्मृति में रखा जा सकता है ।
आचार्य भद्रबाहु नियुक्तियों के रचनाकार माने जाते हैं। चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रवाहु से वे भिन्न थे, ऐसा विद्वानों का अभिमत है ।
भाष्य
विद्वानों को नियुक्तियों द्वारा की गई व्याख्या संभवतः पर्याप्त न लगी हो। अतः उन्होंने भाष्यों के रूप में नये व्याख्या - ग्रंथ लिखे ।
'भाषितुं योग्यं भाष्यम्' जो भाषित या व्याख्यात करने योग्य होता है अर्थात् जिसके द्वारा विशेष व्याख्या की जाती है, उसे भाष्य कहते हैं। शिशुपालवध में महाकवि माघ ने एक स्थान पर भाष्य का विवेचन करते हुए लिखा है संक्षिप्त किंतु अर्थ गरिमा या अर्थ गंभीरता से युक्त वाक्य का सुविस्तृत शब्दों में विश्लेषण करना भाष्य है।
विद्वानों ने भाष्य की एक अन्य प्रकार से भी व्याख्या की है। "जहाँ सूत्र का अर्थ, उसका अनुसरण करने वाले शब्दों द्वारा किया जाता है, अथवा अपने शब्दों द्वारा उसका विशेष रूप में वर्णन किया जाता है, उसे भाष्य कहा जाता है ।" भारतीय साहित्य में भाष्य का व्याख्या- ग्रंथ के रूप में विशेषतः प्रयोग हुआ है।
महर्षि पतंजलि का व्याकरण - महाभाष्य सुप्रसिद्ध है, जो पाणिनि की अष्टाध्यायी पर उन द्वारा | रचित है। आदि शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र, उपनिषद् तथा गीता पर जो व्याख्याएं लिखीं, वे शांकरभाष्य
१. शिशुपालवध महाकाव्य, सर्ग- २, श्लोक-२४.
२. संस्कृत हिंदी कोश (वामन शिवराम आप्टे), पृष्ठ ७३९.
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