Book Title: Namo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Ujjwal Dharm Trust

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Page 515
________________ उपसंहार: उपलब्धि: निष्कर्ष शष्ट्य , प्रकाश ष्टि से भासित न और हावीर आयाम प्रसंगों ई है। भनुरूप ख्याएँ 1 और रहा। वेस्तृत ख्यात णमोक्कार मंत्र जैनों का संप्रदायातीत, सार्वभौम मंत्र है। मंत्र का सबसे बड़ा कार्य अनादिकालीन मूर्छा को तोड़ना है। णमोक्कार मूर्छा को भंग करता है, जिससे साधक अनासक्त बनता है। णमोक्कार शक्ति-जागरण का महामंत्र है। वह सुषुप्त शक्तियों को जगाता है। उन्हें स्फूर्त करता है। इसमें अद्भुत प्रभाव है। यह अंतर्मुख होने की सूक्ष्म प्रक्रिया है। णमोक्कार मंत्र के जप से हम प्रकृति से जुड़ते हैं। हमारा दृष्टिकोण अति व्यापक बनता है। ___ णमोक्कार मंत्र के अंतस्तल में जाकर, चमत्कारों से हटकर, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से चिंतन करना अपेक्षित है। णमोक्कार मंत्र विघ्न विनाशक तो है ही, यह शांत, सुस्थिर तथा समृद्ध स्थिति की ओर ले जाता हुआ, आत्म-दर्शन के साथ जुड़ने की सफल प्रक्रिया प्रदान करता है। णमोक्कार मंत्र का मूल लक्ष्य आत्मा के आवरणों, विकारों तथा प्रतिरोधों को दूर करना है। इस मंत्र में अपूर्व शक्ति है। बुद्धि की अपेक्षा अनुभूति का पक्ष इस मंत्र के साथ मुख्य रूप से संलग्न है। इसके कण-कण में उत्थान का नव प्रभात है। मानव में आध्यात्मिक, मानसिक तथा कायिक सत्यों का जागरण इस महामंत्र से संभव है। यह एक ऐसी छैनी है, जो सम्यक्त्व के माध्यम से मिथ्यात्व को विच्छिन्न करती है। णमोक्कार में व्यक्ति-शुद्धि की विलक्षण शक्ति है। वास्तव में यह जीवन-शोधन का अनन्य साधन है। यह व्यक्ति-व्यक्ति के माध्यम से समाज के ऊर्वीकरण का प्रमुख आधार है। मानव के जीवन में नमस्कार का बहुत उच्च स्थान है। मनुष्य के हृदय की कोमलता, समरसता, भावुकता तथा गुण ग्राहकता का तभी पता लगता है, जब वह अपने से श्रेष्ठ एवं पवित्र महान् आत्मा को भक्ति-भाव से गद्-गद् होकर नमस्कार करता है। गुणों के समक्ष अपने अहंकार का त्याग कर गणीजन के चरणों में अपने आपको सर्वतोभावेन अर्पित कर देता है। णमोक्कार के पाँच पद हमारे लिए आलंबन हैं, आदर्श हैं। उन तक पहुँचना, अपनी आत्मा को उनके सदृश बनाना, विकसित करना हमारा आध्यात्मिक ध्येय है। नमस्कार, जिसमें विनय-भाव समाया हुआ है, लक्ष्य की पूर्ति में बहुत सहायक है। ___ कमलों के विकास में सूर्य निमित्त बनता है। कुमुदों के विकास में चंद्र निमित्त है, उसी प्रकार अरिहंत, सिद्ध संसारी आत्माओं के उत्थान में निमित्त बनते हैं। सत्पुरुषों का स्मरण करने से विचार पवित्र होते हैं। विचारों के पवित्र होने से असत् संकल्प नहीं होते। आत्मा में उत्साह, स्फूर्ति तथा शक्ति का संचार होता है, अपने स्वरूप का भान होता है। वैसा होने से कर्म-बंधन टूटने लगते हैं। योगी तथा रूप से वेस्तृत 476

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