Book Title: Namo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Ujjwal Dharm Trust

View full book text
Previous | Next

Page 532
________________ RAM णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन श्वपाक पुत्र- चांडाल कुलोत्पन्न हरिकेश मुनि है, जिनके तप की विशेषता साक्षात् दृष्टिगोचर होती है। जाति की विशेषता नहीं दिखलाई देती। इनके तप और तेज की रिद्धि वात्सव में अत्यंत प्रभावपूर्ण तथा चामत्कारिक है। जिस धर्म में उच्च-निम्न जाति आदि का कोई भी भेद न हो, वह वास्तव में सर्वग्राह्य होता है। अनेकान्तवादी व्यापक दृष्टिकोण भगवान् महावीर की चिंतन के क्षेत्र में एक बहुत महत्त्वपूर्ण देन है। उन्होंने किसी भी विषय में, उसके प्रातिपादन में एकांतिक आग्रह का निषेध किया है। उन्होंने बतलाया कि पदार्थ में अनेक गुण, विशेषताएँ होती हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव की दृष्टि से वह अनेक रूप में व्याख्येय है। अनेकांतवादी दर्शन चिंतन और कथन में अनाग्रह पूर्ण वृत्ति को उत्पन्न करता है, दृष्टिकोण को व्यापक और उदार बनाता है। आज संसार में जितने विवाद एवं संघर्ष चलते हैं, उन सबके साथ प्राय: ऐकांतिक आग्रह का भाव जुड़ा हुआ है। इसके कारण विचारों में परस्पर समन्वय नहीं हो पाता। परिवार, समाज, तथा राष्ट्र तक सर्वत्र आज ऐसे ही स्थिति दृष्टिगोचर होती है। राजनैतिक, प्रशासनिक, व्यावसायिक, औद्योगिक आदि क्षेत्रों में, जिनमें विभिन्न रुचि और मनोवृत्ति के लोग सम्मिलित होते हैं, आग्रहवृत्ति के कारण ही सामंजस्य नहीं हो पाता। तरह-तरह के विवाद खड़े हो जाते हैं, मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं, जिनका परिणाम संघर्षों के रूप में उत्पन्न होता है। अनेकान्तवादी दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया जाए तो ये स्थितियाँ कभी नहीं आतीं, जो आज हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन को क्षत-विक्षत कर रही हैं। अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत पर आधारित धर्म ही भविष्य का धर्म हो सकता है। उपर्युक्त अ निष्कर्ष सिद्ध-पद भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्म का अन्तिम लक्ष्य है। णमोक्कार मंत्र में स्वीकृत पाँच पदों में यह एक है, किन्तु अपने अतिरिक्त चारों पदों का साध्य या प्राप्य यही हैं। ‘णमो सिद्धाणं पद सिद्धों के प्रति साधक के अत्यन्त आदर, भक्ति, कृतज्ञता और विनय का बोधक है। प्रस्तुत ग्रंथ में सिद्ध-पद के साथ अनुस्यूत तत्त्व, आचार, साधना-पथ इत्यादि पर समीक्षात्मक, तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रकाश डाला गया है। यदि महान् और परम साध्य को व्यक्ति समझ ले तो उसके दृष्टिकोण में नि:संदेह परिवर्तन आ सकता है, क्योंकि आन्तरिक भाव और क्रियात्मक जीवन का कारण-कार्य रूप संबंध है। यदि कारण विशुद्धिपूर्ण हो तो कार्य की निष्पत्ति विकारपूर्ण नहीं होती। सिद्धत्व, मुक्तत्त्व अथवा ब्रह्मसाक्षात्कार या परिनिर्वाण के प्रति मनुष्य के मन में निष्ठा व्याप्त हो जाय तो वह भौतिकता को आवश्यकता से अधिक महत्त्व न देकर यथार्थता के मार्ग का अवलंबन कर सकता 493

Loading...

Page Navigation
1 ... 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561