Book Title: Namo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Ujjwal Dharm Trust

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Page 517
________________ उपसंहार : उपलब्धि : निष्कर्ष की शक्ति त्य है कि सक्त नहीं के जागरण क्षण और कर्षण में क्कार का गे बढ़ता में इष्ट के मंत्र माता सकता। 1 विकास । बाह्य लौकिक चमत्कार भी न हो, ऐसी बात नहीं है, किंतु आध्यात्मिक साधक को उनकी कामना नहीं करनी चाहिए। | मंत्र की आराधना, जप, स्मरण आदि के संदर्भ में साधक को भलीभाँति बोध होना चाहिए। जप के लिए समुचित, विनशून्य स्थान, शांत वातावरण, शुद्ध उच्चारण, ध्यान के द्वारा उसका स्थिरीकरण इत्यादि का ज्ञान और विधिपूर्वक निरंतर अभ्यास करना आवश्यक है। इस अध्याय में मंत्राराधना के इन पक्षों पर भी प्रकाश डाला गया है, जिससे जिज्ञासुओं को मंत्र-विषयक सूक्ष्म बोध होने के साथ-साथ क्रियात्मक रूप में भी उस दिशा में अधिकाधिक आगे बढ़ने का उत्साह और संबल प्राप्त हो। ऐसा होने से ही 'ज्ञान कियाभ्यां मोक्ष:'-- यह सूत्र सफल हो सकता है। यह साफल्य ही सिद्धत्व की उपलब्धि है। । यहाँ मंत्र और अंतश्चेतना, ध्वनितरंग, मंगल वाक्यों की महत्ता, मंत्राराधना के मार्ग, णमोक्कार की आराधना, स्वरूप, जप, सिद्धत्व-प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त कराने में णमोक्कार मंत्र की उपयोगिता इत्यादि मंत्र-विज्ञान संबंधी अनेक विषयों का निरूपण किया गया है। नवतत्त्व, नयवाद, निक्षेपवाद, योग, ज्योतिष, राजनीति, प्रशासन-तंत्र, न्याय-तंत्र, अर्थशास्त्र, गणितशास्त्र, रंग-विज्ञान, ललित कलाएँ, काव्यशास्त्रगत नव रस इत्यादि अनेक प्राचीन, अर्वाचीन अपेक्षाओं से णमोक्कार मंत्र का इस अध्याय में विस्तार के साथ तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन किया गया है। ऐसा करने का यह लक्ष्य रहा कि विभिन्न क्षेत्रों में कार्यशील लोग अपनी-अपनी मनोभूमिकाओं के अनुसार इसे सरलता पूर्वक समझ सकें, अपना सकें । यह अनेक दृष्टिकोणों के साथ किया गया विवेचन णमोक्कार मंत्र की व्यापकता को सिद्ध करता है। णमोक्कार मंत्र में जैन धर्म की प्राण प्रतिष्ठा है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर सिद्ध परमात्मा सुशोभित हैं। णमोक्कार को जो भलीभाँति समझ लेता है, आत्मसात् कर लेता है, वह जैन धर्म को, आध्यात्मिक साधना-मार्ग को अधिगत कर लेता है। णमोक्कार मंत्र में साधना के, आत्मोपासना के बड़े मनोज्ञ सूत्र संग्रथित हैं। सिद्ध परमेश्वर के स्वरूप को आत्मसात् कराने में णमोक्कार मंत्र की बड़ी भूमिका है। यही कारण है कि इस शोध-ग्रंथ में णमोक्कार मंत्र के अनुशीलन, अनुसंधान में एक पूरा अध्याय उल्लिखित हुआ है। तृतीय अध्याय जैन आगमों में सिद्ध-पद का जो बहुमुखी विश्लेषण हुआ है, तीसरे अध्याय में सार रूप में उसे समीक्षात्मक दृष्टिकोण से उपस्थित करने का प्रयास किया गया है। मुख्यत: आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, उपासकदशा, अंतकृद्दशा, प्रश्नव्याकरण, औपपातिक, राजप्रश्नीय, चंतन से, हैं, जैसे स्तार से प्रचलित कार का का मन लगते पात्मिक । बहुत 478

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