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णमो सिद्धाण पद समीक्षात्मक परिशीलन
| इस मंत्र के स्मरण से पवित्र हो जाता है। नवकार मंत्र दधि, दुर्वा, अक्षत, चंदन, नारियल, पूर्णकलश, स्वस्तिक, दर्पण, भद्रासन, मत्स्ययुगल, श्रीवत्स, नंद्यावर्त इत्यादि सभी मंगल वस्तुओं में उत्कृष्ट है।
णमोक्कार का स्मरण करने से अनेक प्रकार की सिद्धियाँ उपलब्ध होती है । अमंगल दूर होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि किसी भी वस्तु की महिमा उसके गुणों द्वारा प्रगट होती है। इस महामंत्र के गुण इतने हैं, जिनकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते। इसमें एक ऐसी विद्युत् शक्ति विद्यमान है, जिससे इसके उच्चारण मात्र से पाप और अशुभ का नाश हो जाता है। इस मंत्र की महिमा में अनेक ग्रंथ रचे गए हैं। कहा जाता है- जन्म, मृत्यु, भय, क्लेश, पीड़ा, दुःख, दारिद्र्य आदि इस महामंत्र के जप से क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं ।
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यह महामंत्र संसार में परम सारभूत तत्त्व है। यह संसार से मुक्त होने का सुलभ अवलंबन है। तीनों लोकों में अनुपम है। इसके सदृश और कोई मंत्र चामत्कारिक और प्रभावशाली नहीं है। अतएव यह तीनों लोकों में अद्वितीय है। जिस प्रकार अग्नि का एक कण घास की बहुत बड़ी राशि को जला डालता है, उसी प्रकार यह मंत्र सब प्रकार के पापों को जला देता है । यह संसार का उच्छेदक है ।
यह मनुष्य के भाव - संभार - राग-द्वेष आदि, द्रव्य संभार - ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को विनष्ट करता है। तीक्ष्ण विषयों का विनाश करता है। कर्मों का उन्मूलन करता है। योग निरोध पूर्वक इसका स्मरण करने से कर्मों के बंधन ध्वस्त होते हैं। भाव सहित विधिपूर्वक इसका जप करने से | लौकिक, अलौकिक सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । दुर्लभ, कठिन, असंभव कार्य भी णमोक्कार मंत्र से सिद्ध हो जाते हैं। यह मंत्र 'केवलज्ञान' मंत्र कहलाता है, अर्थात् इसके जप से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। अंत में यह निर्वाण सुख, मोक्ष सुख प्रदान करता है।
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आचार्य वादीभसिंह ने एक प्रसंग में लिखा है
श्री जीवन्धर स्वामी ने एक मरणोन्मुख श्वान को णमोक्कार मंत्र सुनाया था। मंत्र सुनाने का | इतना प्रभाव हुआ कि वह श्वान देव के रूप में उत्पन्न हुआ । इससे यह सिद्ध होता है कि यह मंत्र आत्म-विशुद्धि और कल्याण का बहुत बड़ा हेतु है।'
आचार्य सिद्धसेन ने 'नमस्कार माहात्म्य' में लिखा है :
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नवकार महामंत्र को भावसहित स्मरण किया जाए तो यह समस्त दुःखों का क्षय करता है तथा समस्त ऐहिक और पारलौकिक सुख प्रदान करता है। इस पंचम काल में यह मंत्राधिराज कल्पवृक्ष के समान सभी मनोरथों को पूर्ण करता है। सांसारिक प्राणियों को इसका अवश्य जप करना चाहिए।
१ मंगलमंत्र णमोकार - एक अनुचिंतन, पृष्ठ : ३४-३६.
२. क्षेत्र चूड़ामणि, अध्ययन- १०, श्लोक - ४.
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