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सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना
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णमोक्कार महामंत्र समस्त जीवों में समता और स्नेह का परिणाम विकसित करता है। उससे विश्व-वात्सत्य की भावना उत्पन्न होती है। आत्मा शांत, दांत, निष्काम, निर्दभ और निःशल्य होकर उत्तम कार्यों में तत्पर होती है।'
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णमोक्कार से कृतज्ञता का विकास ___णमोक्कार चतुर्दश पूर्वो का सार है तथा यह श्रुत-ज्ञान का रहस्य है। इसका एक कारण यह है कि इससे कृतज्ञता का गुण उत्पन्न होता है एवं परोपकार का भाव उदित होता है। परोपकार के | गण को सूर्य और कृतज्ञता के गुण को चंद्र की उपमा दी जा सकती है। जिसका अपने पर उपकार हो, उपकृत व्यक्ति को उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये। यह धर्म की नींव या आधार है। णमोक्कार महामंत्र मूल रूप में यह ज्ञान प्रदान करता है, इसलिये इसे मूलमंत्र या महामंत्र कहा गया है।
अरिहंत आदि पंच-परमेष्ठी, जो णमोक्कार मंत्र में वंदित हैं, हमारे परमोपकारक हैं। उनके उपकार को मानना, उनका आदर करना, सम्मान करना, उपकृत व्यक्तियों का कर्तव्य है। णमोक्कार महामंत्र हमें यह संदेश प्रदान करता है, क्योंकि पंच-परमेष्ठी, जन-जन का सदा से अत्यंत उपकार करते आए हैं। उन्होंने अतीत में उपकार किया है, वर्तमान में वे हमारे लिये प्रेरणाप्रद हैं, इसलिये उपकारी हैं। भविष्य में भी वे सदैव समस्त प्राणियों के लिये प्रेरणाप्रद तथा उपकारी रहेंगे।
"अज्ञान एवं अहंमन्यता के आग्नह को मिटाने हेतु णमोक्कार अनिवार्य है। णमोक्कार का अर्थ है- देव, गुरु की अधीनता का स्वीकार ।"२ "पंच परमेष्ठियों की पहचान करना आवश्यक है। वैसा कर, उन्हें नमस्कार करना अपेक्षित है। इस प्रकार यदि नमस्कार करना आ जाता है तो अपने लिए सभी पदार्थ सिद्ध हो जाते हैं।"
"मन का बल मंत्र से ही विकसित होता है। मंत्रों में सबसे श्रेष्ठ मंत्र णमोक्कार महामंत्र है। उसके द्वारा काम, क्रोध, लोभ, राग, द्वेष तथा मोह रूप आन्तरिक शत्रु जीत लिए जाते हैं। ___ “श्रद्धापूर्वक नवकार महामंत्र के स्मरण द्वारा, बार-बार उसके जप द्वारा अनुप्रेक्षा और स्वाध्याय | की योग्यता आती है तथा उससे ज्ञान का प्रकाश प्रकट होता है।"५
णमोक्कार के बिना तप, चारित्र और शास्त्र-ज्ञान निष्फल कहा गया है, क्योंकि यदि णमोक्कार की आराधना नहीं होगी तो कृतज्ञ-भाव नहीं होगा। णमोक्कार की आराधना के बिना तप आदि
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१. त्रैलोक्य दीपक, पृष्ठ : ४००-४०२. ३. नवकार मंत्र तत्काल केम फले ? पृष्ठ : २६. ५. श्री नमस्कार महामंबनुं दर्शन, पृष्ठ : ५१.
२. महामंत्र की अनुप्रेक्षा, पृष्ठ : २८. ४. अनुप्रेक्षा किरण- १, २, ३, पृष्ठ : ३.
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