Book Title: Namo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Ujjwal Dharm Trust

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Page 438
________________ जैन-योग पद्धति द्वारा सिद्धत्व की साधना सा नहीं है, | रोक भी प्रभाव होता है कि उन्हें 'क्रियावंचक' या 'फलावंचक' प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार इन योगियों को तीनों अवंचक प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे योगी ही योग-साधना का प्रयोग करने के अधिकारी हैं। तब विनों 'अभिहित साधना या का सम्यक्, है। उसका सिद्ध कर | यहाँ तीन प्रकार के अवंचकों का वर्णन हुआ है। इनका विश्लेषण यथाप्रसंग पहले किया जा चुका है। यह स्मरणीय है कि योगावंचक का संबंध सत्पुरुषों के संयोग से है। सत्पुरुषों के सान्निध्य या साहचर्य से सक्रिया संपन्न होती है और उसका सत्फल प्राप्त होता है। योगदृष्टि समुच्चय की उपयोगिता आचार्य हरिभद्र सूरि अपने इस ग्रंथ के संबंध में सूचित करते हैं कि कुलयोगियों और प्रवृत्तचक्रयोगियों में, जो अति सामान्य बुद्धि के व्यक्ति हैं, मुझसे कम बुद्धिमान हैं, इस ग्रंथ के श्रवण से पक्षपात- इस ओर जो आकर्षण, शुभेच्छा आदि भाव जागरित होंगे, उनका यत्किंचित् उपकार होगा। वे गुणग्राही होते हैं, अत: सुन कर प्रसन्न होंगे, सत्-तत्त्व के ज्ञान में उनकी रुचि बढ़ेगी। श्रद्धा संस्फुरित होगी। योगाभ्यास का बोध होगा। उसमें समुद्यत होने की आकांक्षा जागरित होगी। योगबीज परिपुष्ट होंगे, जिससे योगसाधना के प्रकृष्ट, उत्तम अंकुर प्रस्फुटित होंगे। योग रूपी कल्पवृक्ष फलेगा-फूलेगा तथा मोक्षरूप, सिद्धत्वरूप दिव्य-अमृत-फल प्राप्त होगा।' पालोचन आचार्य हरिभद्रसूरि अपने युग के प्रकांड विद्वान्, आगमवेत्ता, दर्शनिक और योगी थे। उन्होंने इस प्रसंग में अपने आपको मंद बुद्धि कहा है, यह उनकी सहज सरलता, विनम्रता और आत्मार्थिता का सूचक है। इससे यह स्पष्ट है कि वे महान् विद्वान् होने के साथ-साथ अध्यात्म-योग के प्रबुद्ध साधक भी थे। ते हैं, जो ता है। दृढ़ करता ढ़ संस्कार एक शंका : एक समाधान यहाँ एक शंका उपस्थित होती है कि केवल तात्त्विक पक्षपात से क्या सधेगा? वह तो भावना मूलक होता है। धर्माराधना के लिए तो क्रिया की आवश्यकता है। इस शंका का समाधान करते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि तात्त्विक पक्षपात और भावशून्य क्रिया में वैसा ही अंतर है, जैसा सूर्य के प्रकाश और खद्योत की चमक में होता है। अर्थात् तात्त्विक पक्षपात सूर्य के प्रकाश के सदश है तथा भाव | क्रिया खद्योत की चमक जैसी है। 'अंश का पति प्राप्त १. योगदृष्टि समुच्चय, श्लोक-२१३. ३. योगदृष्टि समुच्चय, श्लोक-२२३. २. योगदृष्टि समुच्चय, श्लोक-२२२. ह अमोघ 401

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