Book Title: Namo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Ujjwal Dharm Trust

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Page 511
________________ मृगमरीचिका में विभ्रांत मानव संसार में मानव को प्राणीवृंद में सर्वोत्तम माना गया है, क्योंकि वह अपनी मननशील, चिन्तनशील, सदसद् में भेद करने में सक्षम प्रज्ञा समन्वित कृति के कारण चरित्र की उन ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है, जो उसे मानव से देवत्व ही नहीं, परमात्मत्व तक पहुँचा देती है, किंतु आज उसकी मननशीलता और सदसद् विवेकिनी प्रज्ञा कुण्ठित प्रतीत होती है । - उपसंचर उपलब्धि निष्कर्ष यद्यपि आज मानव व्यस्त तो बहुत है, उसे क्षण भर का रिक्त समय नहीं है, अहर्निश दौड़-धूप में वह लगा है, किंतु उस दौड़-धूप का लक्ष्य और सार क्या है ? वह उससे बेभान है। वह मृगमरीचिका जैसी भूल भुलैया में विभ्रांत है। वस्तुतः जो नहीं है, उसे प्राप्त करने हेतु निरन्तर दौड़ता जा रहा है, किंतु अज्ञान के कारण समझ नहीं पाता कि ऐसा वह क्यों कर रहा है ? अपनी इस अविश्रांत व्यस्तता की कहाँ तक सार्थकता है, वह जान नहीं पाता। जीवन का यह क्रम अनवरत चलता रहता है। एक दिन आता है, जब मनुष्य सब कुछ छोड़कर इस संसार से प्रस्थान करने लगता है, तब संभवतः उसके मन में आता हो, उसने जो जीवन जीया, क्या सफल रहा? वह अपने आपसे इसका संतोषजनक उत्तर नहीं प्राप्त कर पाता । मन में नैराश्य और असंतोष लिए चला जाता है। यह जीवन का कैसा दुःखद अंत है ? आज प्राय: ऐसी ही स्थिति दृष्टिगोचर होती है। साधना का निर्मान्त पथ भारतीय दर्शन अत्यंत सूक्ष्मदर्शी रहा है। जीवन के रहस्यों को उद्घाटित करने में भारतीय | मनीषियों ने जो उद्यम किया, वह सारस्वताराधना के इतिहास में अनुपम है । अंतर्वीक्षण की प्रेरणा देते हुए उन्होंने आध्यात्मिक आनंद की सर्वोत्कृष्टता स्थापित की। उसे जीवन का परम सत्य बतलाया । उसका संबल लिए जिज्ञासु मुमुक्षु साधक को उत्तरोत्तर जीवन की लंबी यात्रा में गतिशील रहने की प्रेरणा दी। वह एक ऐसी यात्रा है, जिसका पथ बड़ा कंटकाकीर्ण है। अत एव साधक को अत्यधिक आत्मबल, साहस और धैर्य को संजोए रखने हेतु सावधान किया । प्रस्तुत शोध ग्रंथ में उसी अन्तर्मुखी आध्यात्मिक यात्रा का विश्लेषण है, जिसका प्रारंभ सद् विश्वास और सद् ज्ञान से होता है तथा समापन जैन दर्शन की भाषा में 'सिद्धत्व' में होता है । जो महापुरुष सफलतापूर्वक उस यात्रा पथ पर आगे बढ़ते हुए अंतिम मंजिल तक पहुँच जाते हैं, वे सफल हो जाते हैं, अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं, अपना साध्य साध लेते हैं, सिद्ध के रूप में परिणत हो जाते 472

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