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णमो सिद्धाण पद : समीक्षात्मक अनशीलन
क्षत्रियकुंड ग्राम में हुआ था। उनका वंश लिच्छवी-वंश कहा जाता था।
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भगवान् बुद्ध का जहाँ जन्म हुआ था, वह मल्ल गणराज्य था। इन गणराज्यों को संघ भी कहा जाता था। गण, समूह, बहुसंख्यक जनसमुदाय या गणराज्य के दबाव के कारण एक सम्यक्त्वी के जीवन में ऐसी स्थिति आ जाए कि उसे सम्यक्त्व के विरूद्ध आचरण करना पड़े तो उसके सम्यक्त्व का भंग नहीं होता।
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३. बलाभियोग
यदि कभी किसी धनबल, जनबल, तनबल, विद्याबल आदि से युक्त पुरुष के दबाव, डर या धमकी आदि के कारण एक सम्यक्त्वी साधक को सम्यक्त्व के विपरीत कार्य करने को बाध्य होना पडे तो उसका सम्यक्त्व भग्न नहीं होता।
४. सुराभियोग
यदि कभी कोई देव किसी सम्यक्त्वी को सम्यक्त्व से विचलित करने को भयभीत करे, प्राण लेने की, परिवार या धन नष्ट करने की धमकी दे तो वैसी स्थिति में सम्यक्त्वी यदि सम्यक्त्व के विपरीत आचरण हेतु बाध्य हो जाता है तो उसका व्रत टूटता नहीं।।
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५. वृत्तिकांतार
वृत्ति का अर्थ आजीविका और कांतार का अर्थ भयानक वन है। सम्यक्त्वी कभी मार्ग भूल कर घोर जंगल में भटक जाए, रास्ता भूल जाए, तब उस वन को पार करने के लिए यदि उसे सम्यक्त्व की मर्यादा या सीमा से बाहर कोई आचरण करना पड़े अथवा वृत्ति- आजीविका के निर्वाह में विपरीत परिस्थिति उत्पन्न हो जाए, तब सम्यक्त्वी को यदि विवश होकर सम्यक्त्व के प्रतिकुल कोई कार्य करना पड़े तो उसका सम्यक्त्व नहीं टूटता। ६. गुरुनिग्रह
कदाचित् माता-पिता आदि मान्यजन, सम्माननीय गुरुजन, महापुरुष किन्हीं विशेष कारणों को लेकर सम्यक्त्वी को सम्यक्त्व के प्रतिकूल आचरण करने को कहें तो उनके कथन या आग्रह के कारण सम्यक्त्वी को सम्यक्त्व के विपरीत कार्य करना पड़े तो उसका सम्यक्त्व भंग नहीं होता।
कदाचित् ऐसा प्रसंग बने, कोई मिथ्यात्वी पुरुष सम्यक्त्वी साधक के देव, गुरु एवं धर्म की प्रशंसा करे, तब उसके उस कार्य से, धर्मानुराग से प्रेरित होकर सम्यक्त्वी उस मिथ्यात्वी का आदर सत्कार कर तो उसका सम्यक्त्व भंग नहीं होता।
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१. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ : ९.
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