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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन
साधना के क्षेत्र में योग, भारतीय वाङ्मय का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शब्द है। महर्षि पतंजलि | द्वारा की गई व्याख्यानुसार चैतसिक वृत्तियों का निरोध कर आत्मा को उत्तरोत्तर अष्टांग योग मार्ग के माध्यम से परमात्म- अवस्था तक पहुँचाना इसका चरम अभिप्रेत है। यह योग मार्ग भारत के विभिन्न आध्यात्मिक आम्नायों द्वारा अपने-अपने मौलिक सिद्धांतों के अनुरूप परिगृहित हुआ है।
जैन मनीषियों का सदा से असांप्रदायिक और असंकीर्ण दृष्टिकोण रहा है । आचार्य हरिभद्र सूरि आदि जैन विद्वानों ने जैन तत्त्वों के आधार पर जैन योग के रूप में एक साधना पथ प्रशस्त किया, I जिसका अवलंबन कर साधक क्रमशः बहिरात्म भाव का परित्याग कर अंतरात्म-भाव स्वायत्त कर लेता है। वस्तुतः परमात्म-भाव या सिद्धत्व प्राप्ति का यह मार्ग बड़ा आकर्षक और उपयोगी है। षष्ठ- अध्याय में इसी विषय का सम्यक् सविमर्श निरूपण किया जाएगा।
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