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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन
३. मोक्ष के मार्ग को अमार्ग मानना, ५. अजीव को जीव मानना,
७. असाधु को साधु मानना,
९. अमुक्त को मुक्त मानना,
ये मिथ्यात्व या विपरीत श्रद्धा के दस भंग हैं ।
सम्यक्त्व के दस भंग
४. अमार्ग को मोक्ष मार्ग मानना,
६. जीव को अजीव मानना,
१. अधर्म को अधर्म मानना,
२. धर्म को धर्म मानना,
३. अमार्ग को अमार्ग मानना,
४ मार्ग को मार्ग मानना,
५. अजीव को अजीव मानना,
६. जीव को जीव मानना,
७. असाधु को असाधु मानना,
८. साधु
को साधु मानना,
९. अमुक्त को अमुक्त मानना,
१०. मुक्त को मुक्त मानना ।
सम्यक्त्व के विषय में संक्षेप में तो इतना ही कहना पर्याप्त है कि सच्चे देव, गुरु और धर्म को | स्वीकार करना सम्यक्त्व का लक्षण है, किंतु जन साधारण को हृदयंगम कराने की दृष्टि से एक-एक बात को खोलकर स्पष्ट रूप में विस्तार पूर्वक बताना, व्याख्या करना अपेक्षित है। इसीलिए भिन्न रूप में इस तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयत्न शास्त्रकारों ने किया है ।
सम्यक्त्व के विविध पक्ष
आत्मगुणों के उत्तरोत्तर विकास के माध्यम से जो अध्यात्म यात्रा गतिशील होती है, उसका मूल सम्यक्त्व है । जिस प्रकार नींव के बिना विशाल प्रासाद निर्मित नहीं होता, उसी प्रकार सम्यक्त्व की पृष्ठभूमि के बिना संयम और साधना की अट्टालिका का होना संभव नहीं है ।
१. जैन तत्त्व प्रकाश, पृष्ठ ४६६-४७१.
८. साधु का असाधु मानना,
१०. मुक्त को अमुक्त मानना ।
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आचार्यों, संतों और विद्वानों ने इस तथ्य पर अनेक प्रकार से चर्चा की है । तदनुसार सम्यक्त्व के | सड़सठ बोल स्वीकार किए गए हैं, जो चार श्रद्धान, तीन लिंग, दस विनय, तीन शुद्धि, पाँच दूषणत्याग, आठ प्रभावना, पाँच भूषण, पाँच लक्षण, छः यतना, छः आगार, छः भावना, छः स्थानसूत्र- इन रूपों में विभक्त हैं ।
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