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सिद्धत्व-पथराणस्थानमूलक सोपान-क्रम
'जागरूक
ऐसे दोष
चाहिए। गे दूषित
में संदेह तो किसी में यहाँ
विस्तत करने में, जन-जन तक उसको फैलाने में यत्नशील रहना, धर्म-प्रसार करना प्रभावना कहा जाता है। प्रभावना के आठ प्रकार बतलाए गए हैं
(१) प्रावचनी, (२) धर्मकथी, (३) वादी, (४) नैमित्तिक, (५) तपस्वी, (६) विशिष्ट विद्या प्राप्त (७) सिद्ध- विशिष्ट योग-सिद्धि प्राप्त (6) कवि।
प्रवचन, धर्म-कथा, वाद, निमित्त, तपस्या, विद्या, सिद्धि और कवित्व के द्वारा धर्म की प्रभावना करना इनका लक्ष्य है।
यहाँ वादी का तात्पर्य उस तत्त्वज्ञ व्यक्ति से है, जो खंडन-मंडन द्वारा अपने पक्ष को स्थापित करने में समर्थ होता है।
जिस शास्त्र से वर्तमान, भूत, भविष्य इन तीनों कालों से संबंधित लाभ या अलाभ, प्राप्ति या हानि का जो ज्ञान होता है, उसे निमित्त-शास्त्र कहा जाता है। निमित्त-शास्त्र के सहारे धर्म की महत्ता स्थापित करना, प्रभावना करना, नैमित्तिक प्रभावना कहा जाता है।
कठोर तपस्या द्वारा जैन शासन की प्रभावना करना, तपस्वी-प्रभावना के अंतर्गत है। अनेक प्रकार की विद्याओं, भाषाओं, लिपियों द्वारा धर्म की प्रभावना करना, विद्या प्रभावना है।
योग-साधना से प्राप्त अंजन, पादलेप आदि सिद्धियों या लब्धियों द्वारा चमत्कार दिखलाकर धर्म की प्रभावना करना, सिद्ध-प्रभावना है। सम्यक्-दृष्टि या संयति पुरुष अपनी मान, प्रतिष्ठा, ख्याति, जीवन-निर्वाह आदि के लिए विद्या या साधना का प्रयोग नहीं करते, किंतु जब धर्म-तीर्थ पर कभी विपत्ति या संकट आ पड़ता है, तब वे विद्याओं और सिद्धियों का प्रयोग करते हैं, धर्म की प्रभावना करते हैं। इसमें दोष लगता है, अत: प्रायश्चित लेकर वे दोषों का शुद्धिकरण करते हैं।
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कवित्व प्रभावना
कविता का श्रोताओं पर विलक्षण प्रभाव होता है। काव्य थोड़े से शब्दों में मानव के चित्त को चमत्कृत कर देता है, उस द्वारा धर्म की प्रभावना करना, कवित्व-प्रभावना है।
सुप्रसिद्ध काव्यशास्त्री आचार्य मम्मट ने काव्य या कविता की चामत्कारिकता का वर्णन करते हु लिखा है
काव्यं यशसेऽर्थकृते, व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये । सद्यः परनिर्वतये, कान्ता सममिततयोपदेशयुजे।।
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१. जिणधम्मो, पृष्ठ : ११०-११२.
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