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णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन।
इस पर भगवान् ने उन्हें संबोधित कर कहा- माकंदी-पूत्र ने जैसा कहा, उसी प्रकार कापोतलेश्या--युक्त कायिक आदि जीव सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होते हैं। मैं भी इस प्रकार कहता हूँ।
इसी प्रकार कृष्ण-लेश्या युक्त पृथ्वीकायिक जीव मर कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होते हैं। नील-लेश्यायुक्त पृथ्वीकायिक जीवों पर भी यही लागू होता है।
श्रमण-निग्रंथों ने भगवान् के कथन पर श्रद्धा और विश्वास कर कहा- भगवन् ! आप कहते है, | वैसा ही है। फिर वे भगवान् को वंदन-नमस्कार कर वापस माकंदीपुत्र के पास लौटे तथा उनके कथन पर पहले श्रद्धा न करने के कारण उनसे भलिभाँती सविनय बार-बार क्षमायाचना की।'
उपासकदशांग सूत्र में सिद्धत्व प्राप्ति का संसूचन
उपासकदशांग-सूत्र में एक प्रसंग है- भगवान् महावीर एक समय सुखपूर्वक विहार करते हुए वाणिज्यग्राम नामक नगर में आये। वहाँ धूतिपलाशक नामक चैत्य में ठहरे। आनंद श्रावक दर्शन के लिये आया और भी लोग आए। भगवान् ने धर्म-देशना दी। धर्म-देशना में उन्होंने प्राणातिपातविरमण आदि व्रतों का विवेचन किया। तत्त्वों की व्याख्या की। विभिन्न योनियों में जीव द्वारा जन्म लेने का विवेचन किया। सांसारिक जीवन की अनित्यता का प्रतिपादन किया। अपनी धर्म-देशना में उन्होंने । सिद्ध-अवस्था और षट्जीवनीकाय का विश्लेषण किया।
जिस तरह जीव कर्मों का बंध करते हैं, उनसे छूटते हैं, बद्ध जीव कष्ट पाते हैं, कतिपय अप्रतिबद्ध । आसक्ति रहित व्यक्ति दु:खों का अंत करते हैं, जो आसक्ति युक्त होते हैं, उन जीवों के चित्त में वेदना, पीड़ा और आकुलता बनी रहती है। वे दु:ख सागर को प्राप्त करते हैं । जो जीव वैराग्य प्राप्त करते हैं, वे कर्म-पुद्गल का नाश करते है। संसार में रागपूर्वक किए गए कर्मों की फल निष्पत्ति पाप-युक्त होती है। जो जीव कर्मों का संपूर्णत: नाश करते हैं, उनसे रहित हो जाते हैं, सिद्धावस्था प्राप्त करते हैं।
अंतकृद्दशांग-सूत्र में सिद्धत्व-प्राप्ति के विलक्षण उदाहरण
गजसुकुमाल
अंतकृद्दशांग-सूत्र में उन महान् साधकों का वर्णन है, जिन्होंने कर्मों का क्षय कर सिद्धत्व प्राप्त किया। उनमें गजसुकुमाल का उदाहरण बड़ा महत्त्वपूर्ण है। वह द्वारिका का राजकुमार था। वैराग्य के
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र, शतक-१८, उद्देशक-३, सूत्र-३-७, पृष्ठ : ६७९, ६८० २. उपासकदशांग-सूत्र, अध्ययन-१, सूत्र-११, पृष्ठ : २३.
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