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णमो सिद्धाणं प्रद समीक्षात्मक अनुशीलन
नाम- निक्षेप, स्थापना निक्षेप, द्रव्य-निक्षेप तथा भाव-निक्षेप के रूप में निक्षेप चार प्रकार
१. नाम-निक्षेप
किंतु
जो अर्थ व्युत्पत्ति द्वारा सिद्ध नहीं है, केवल माता, पिता या अन्य व्यक्तियों के द्वारा दिये गए संकेत से सिद्ध होता है, वह नाम निक्षेप है । जैसे किसी व्यक्ति में सिद्धत्व का कोई गुण नहीं है, | माता-पिता ने उसका नाम सिद्ध रखा है। वह बोलने में सिद्ध कहा जाता है, पर वास्तव में यह सिद्ध नहीं है, उसे नाम - सिद्ध कहा जाता है ।
२. स्थापना निक्षेप
वास्तविक वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति, आकृति या चित्र को अथवा जिसमें उस वस्तु का आरोप किया गया हो, उसको स्थापना - निक्षेप कहा जाता है । जैसे सिद्ध का आकार या प्रतीक स्थापना- निक्षेप है वह सिद्ध नहीं है, उसमें मात्र सिद्धत्व का आरोप किया गया है।
३. ४. द्रव्य निक्षेप, भाव-निक्षेप
तीसरा द्रव्य - निक्षेप और चौथा भाव- निक्षेप है । प्रस्तुत प्रसंग में द्रव्य - सिद्ध शब्द भाव-निक्षेप के | अर्थ में प्रयुक्त है। जिस अर्थ में शब्द की व्युत्पत्ति या अर्थ यथावत् रूप में घटित होता हो, जो गुणनिष्पन्न हो, वह भाव - निक्षेप है । इसके अनुसार द्रव्य-सिद्ध वे हैं, जो गुण द्वारा संपूर्णतः सिद्धत्व प्राप्त कर चुके हैं, जो वास्तव में सिद्ध हैं। उन्हें द्रव्य-सिद्ध कहने का अभिप्राय यह है कि सामान्यतः | उनका द्रव्य रूप में अस्तित्व है ।
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आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी नमस्कार - निर्युक्ति में सिद्ध-भूमि के स्वरूप का विवेचन करते लिखते हैं- सिद्ध-भूमि का वर्ण निर्मल पानी के जैसा है। जल-बिंदू, हिम-बर्फ, गोदुग्ध तथा हुए मुक्ताहार- मोतियों के हार के वर्ण जैसा है। उत्तान तने हुए छत्र के समान वह संस्थित है। जिनवरों ने ऐसा प्रतिपादित किया है ।
सिद्ध भूमि की परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास योजन है। परिधि का यह परिमाण यहाँ स्थूल दृष्टि से बतलाया गया है । सूक्ष्म दृष्टि से संबद्ध शास्त्रों में वह यथास्थान वर्णित है ।
सिद्ध-शिला के मध्यभाग में आठ योजन की बहुलता, सघनता- मोटापन तथा अंतिम भाग में
१. तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय- १, सूत्र : ५.
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