________________
णमो सिद्धाण पद: समीक्षात्मक अनशीलन।
है। का
ढकते है
"आचार्य श्री शिवार्य ने भगवती आराधना में सिद्धों के अनुपम, अव्यावाध सुख आदि का वर्णन करते हुए उनकी आराधना करने की प्रेरणा दी है, जो साधक के मन में उत्सुकता उत्पन्न करती है।"
आचार्य योगीन्दुदेव ने 'अमृताशीति' में शुद्धात्मस्वरूप परमात्म-तत्त्व का विश्लेषण करते हुए साधकों को परब्रह्म-स्वरूप में तन्मय होने का उद्बोधन देते हुए कहा है___ “निज शुद्धात्मा का रुचिरूप सम्यक् दर्शन, निजपरमात्मतत्त्व का परिच्छित्तिरूप सम्यग्ज्ञान और निजनिरञ्जन परमात्मतत्त्व का निश्चल अनुभूतिरूप सम्यक् चारित्र-ऐसे निश्चयरत्नत्रयात्मक निजस्वरूप में अन्दर जाकर अगाध जलनिधि (समुद्र) के समान गंभीर स्वरूप-युक्त परब्रह्मस्वरूप को प्राप्त करता है। तुम भी हे निश्चयज्ञ ! मेरे वचनों के सार को समझकर उस परब्रह्मस्वरूप में निवास करो। (इससे तुम) संसार के समाप्ति रूप-स्थित, अनन्त ज्ञानादि गुणों से युक्त निःश्रेयस् (मोक्ष) के अधिपति हो जाओगे।"
एवं
र्ला
निम्नांदि
१. ज्ञा
अ
कहलाते
ज्ञानावर क्षय हो
सिद्धत्व आत्मा की सर्वोत्कृष्ट अवस्था है। वह अनंत ज्ञानमय है। सर्वथा शाश्वत है, अनंत अध्यात्मिक आनंदमय है। मूर्त्तत्व से वर्जित है। इसलिए मृत शरीर के साथ घटित होने वाली स्थितियों से रहित है। अनंत शक्तिमय है।
२. दर्श
इसको 3 होता है
३. वेद
इन गुणों के स्मरण से मोक्ष-मार्ग के पथिकों को यह प्रेरणा प्राप्त होती है कि उनकी आत्माओं में भी ये सभी गुण विद्यमान हैं, जिनको संवर-निर्जरामूलक आत्म-पुरुषार्थ द्वारा अधिकृत कर सकते हैं।
ज्ञाप्य है कि इस विवेचन के अन्तर्गत आठ कर्मों के क्षय से सिद्धावस्था में प्राप्त होने वाले आठ गुणों की चर्चा आई है। अत: प्रसंगोपात्त रूप में यहाँ आठ कर्मों का संक्षेप में वर्णन किया जा रहा हैं। | अमूर्त, चैतन्य-स्वरूप जीव के साथ लगे हुए सूक्ष्म मलावरण, कर्म कहे जाते हैं। कर्म पुद्गल हैं, जड़ हैं। कर्म के परमाणु कर्मदल कहलाते हैं। आत्मा पर स्थित राग-द्वेष रूपी चिकनेपन और योग रूपी चांचल्य के कारण कर्म परमाणु आत्मा के साथ संश्लिष्ट होते जाते हैं। यह ज्ञातव्य है कि कर्मदल आत्मा के साथ अनादिकाल से लगे हुए हैं। उनमें से कई पृथक् होते रहते हैं और कई नये लगते रहते हैं। यह प्रक्रिया निरंतर चालू रहती है।
मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग के कारण आत्मा कर्म-वर्गणा ग्रहण करती रहती
हैं। सात भौतिकवेदनीय
४. मोह
आत
कहा जात संभव नह
५. आय
१. भगवती आराधना, गाथा-२१४७-२१५७, पृष्ठ : ९०४-९०६. २. अमृताशीति (सटीक), श्लोक-६०, पृष्ठ : ११९, १२०.
अ
297