________________
R
S
MARSHAN
PRE
Jammucause
PAWAHARHI
RE
MERA
HERS
WATSARI
।
Heavina
ERIES MARWSNIMAR TEAS
ame
SEARSANE EMAIVATARPAN
R
STAR EVISISASTENavsna
Har
ENAVAST
R
S H PREGNORMSANCTIOGE emaiIATTwentertainmeHRIMAHARAJASTHAN SaliliaHDNEHANDRADHNAMASHAINMENT
णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन
जाती हैं। ये गुण इस तथ्य के परिचायक हैं। इन गुणों में जिन-जिन दोषों के परिहार का उल्लेख है। वे दोष आत्मा की बद्धावस्था में विद्यमान रहते हुए उसको भव-प्रपंच में विभ्रांत करते रहते हैं।
समबायांग-सूत्र, स्थानांग-सूत्र की तरह संख्यात्मक वर्णन पर आधरित है। इतना अंतर हैस्थानांग-सूत्र में दस तत्त्व की संख्याओं के पदार्थों का उल्लेख हैं जबकि समवायांग-सूत्र में एक सौ तक फिर आगे एक सौ पचास तक तथा अंत में कोटाकोटि पर्यंत संख्याओं का कथन है।
३१ वें समवाय में जहाँ ३१ की संख्या से संबंधित पदार्थों का उल्लेख हैं, वहाँ संख्या में इकतीस होने के कारण सिद्धों के आदि-पर्याय के प्रथम समय के इन गुणों का वर्णन किया गया है। इनका विशद विश्लेषण यथाप्रसंग द्रष्टव्य है।
R
TECURRESTEACHINESTRATE
moto
भगवान् महावीर द्वारा सिद्धत्व-प्राप्ति
अंग आगमों में वर्तमान अवसर्पिणी के चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर के जीवन के संबंध में भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से वर्णन मिलता है। इस संख्यामूलक समवायांग-सत्र में बयालीस की संख्या के प्रसंग में भगवान् महावीर के जीवन का एक प्रसंग सूत्रकार ने जोड़ा है।
भगवान् महावीर ने स्वयं प्रबजित होकर बयालीस वर्ष से कुछ अधिक पंच महाव्रतात्मक श्रमण-पर्याय का परिपालन किया। तदनंतर वे सिद्ध, मुक्त, परिनिर्वत तथा सर्व-दुःख-प्रहीण हुए- सब दु:खों से छूटे। इस प्रकार उन्होंने सिद्धत्व- परमसिद्धि प्राप्त की।
यह उल्लेख यद्यपि अत्यंत संक्षिप्त है किन्तु भगवान् महावीर के जीवन के साथ जुड़े हुए इतिहास के एक महत्वपूर्ण प्रसंग को प्रामाणिकता प्रदान करता है।
RASTARRAN
H
T
S
VIES
।
GONDA
SIVASHANCERTISINSite
A RI SonourtelefinitionAmAHARAS
T ERARIRAMAYSANSKRIRAMATTERJSAMANDIRRICHEARANCEMEHAHROMANTERASAINAWADA RINITIATIVinfossionews
HEROINE
सिद्धत्व-परंपरा । वर्तमान अवसर्पिणी के तेरहवें तीर्थंकर भगवान् श्री विमलनाथ थे। इनका समवायांग में चवालीसवें समवाय में उल्लेख हुआ है, जो जैन-परंपरा के प्राचीन इतिहास के एक प्रसंग का सूचन करता है। वहाँ । उल्लेख है कि तीर्थंकर विमलनाथ के बाद चवालीस पुरुषयुग पीढ़ियों तक अनुक्रमिक रूप से एक के बाद
क सिद्ध हए। वहाँ इस वर्णन में 'सिद्ध के साथ बद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए तथा सर्व दुःख रहित हुए'- इन पदों का प्रयोग हुआ है, जैसा पहले के वर्णन में होता रहा है।
ये शब्द सिद्धों की विशेषताओं के द्योतक हैं। अर्थ की मौलिकता में कोई विशेष अंतर नहीं है।
NIA
anilion
१. समवायांग-सूत्र, समवाय-४२, सूत्र-२४७.
SEARCANESSMANIRAMANANARASSSS
171
SISTER
NARENABAR