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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
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सिद्धायतन का अर्थ सिद्धों का स्थान है। कूट तो कोई सिद्धों का स्थान नहीं होता। सिद्धत्व-प्राप्ति की अंतिम वेला में सिद्धों के साथ संबद्ध होने के कारण उनका ऐसा नामकरण होना संगत है।
यहीं से वे कर्मरज विहीन होकर ऊर्ध्वगमन द्वारा सिद्ध-स्थान को प्राप्त हुए। इसलिए उनके साथ। सिद्धत्व का एक महत्त्वपूर्ण इतिहास जुड़ा हुआ है। किस-किस कूट से कब-कब, कौन-कौन आत्माएँ सिद्धत्व प्राप्त करती रहीं, इस संबंध में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। काल सीमा रहित है। वह अनंत है और अनंत आत्माएँ सिद्ध गति में पहुँची हैं। इसलिये यह विवेचन का विषय नहीं है। वैदिक-परंपरा का एक श्लोक यहाँ उद्धृत करना अप्रासंगिक नहीं होगा
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते ।। पूर्ण शब्द अनंत का वाचक है। अनंत में से अंनत को निकाला जाय तो अनंत ही शेष रहेगा।। इसलिए अनंत को एक गणना या संख्या की सीमा में नहीं बांध सकते।
गणित-शास्त्र में स्वीकृत Theory of infinity से भी ऐसा सिद्ध होता है।
स्थानांग-सू कूट-सूत्र के अंतर्गत जंबूद्वीप में मंदर पर्वत के दाहिनी ओर भरत-क्षेत्र में दीर्घ वैताद्य पर्वत के नौ कूटों का वर्णन आया है। कूट का अर्थ 'शिखर' या चोटी है। उन नौ कूटों में| एक का नाम सिद्धायतन है। ___इसी प्रकार जंबूद्वीप के अंतर्गत मंदर पर्वत के दक्षिण में निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर नौ-नौ कूटों का कथन किया गया है। उनमें पहला सिद्धायतन
जंबूद्वीप के अंतर्गत मंदर पर्वत के उत्तर में उत्तरकुरु के पश्चिम-पार्श्व में माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के ऊपरी भाग में नौ कूट बताए गए हैं। जिन में पहला सिद्ध कूट है। ___ जंबूद्वीप के अंतर्गत कच्छवर्ती दीर्घ वैताद्य पर्वत के ऊपरी भाग में नौ कूट अभिहित किये गये हैं, उन में पहला सिद्धायतन-कूट है। ___जंबूद्वीप के अंतर्गत सुकच्छवर्ती दीर्घ वैताद्य पर्वत के ऊपरी भाग में बतलाये गये नौ कूटों में पहला सिद्धायतन-कूट है। इसी प्रकार महाकच्छ, कच्छकावर्ती, आवर्त, मंगलावर्त, पुष्कल तथा पुष्कलावर्ती विजय में स्थित दीर्घ वैतादय नामक पर्वतों के ऊपरी भागों में नौ-नौ कूट हैं। उन सबमें प्रथम कूट का नाम सिद्धायतन- कूट है।
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१. (क) श्रीराम उपनिषद्, शांति पाठ.
(ख) ईशावास्योपनिपद्, शाति पाठ,
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