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सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना
और पुण्य
गुणाकार
शेषफल कहा जाता है। पुन: उस सत्तर की संख्या में से तीस की बाकी करें तो चालीस की संख्या रह जाती है। पहले के शेषफल का यह दूसरा शेषफल है। यही क्रम कर्मों के करने या क्षीण होने में चलता रहता है। इस प्रकार गणित के चारों अंग गुणाकार, भागाकार, जोड़ या बाकी सिद्ध हो जाते हैं।
तीर्थकर तो उदाहरण-स्वरूप हैं। सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और साधुओं के गुण, सुकृत, आध्यात्मिक स्वरूप आदि का संस्तवन, स्मरण, समर्थन, अनुमोदन करने से भी उत्तरोत्तर सुकृत-बृद्धि होती है तथा दुष्कृत का नाश होता है।
होता है। ___ करने से,
होता है। है तब जो
समीक्षा :
आगमों में तथा शास्त्रों में गणितीय संख्या क्रम में अंतिम संख्या अनंत है। अनंत वह है, जिसका अंत नहीं होता।
फल पाँच का प्रकार
सिद्ध हो पाँच हो
यहाँ एक शंका उपस्थित होती है कि अनंत के साथ गुणाकार, भागाकार, जोड़ और बाकी--- इन गणित विषयक प्रक्रियाओं की संगति कैसे हो सकती है ? गुणाकार, भागाकार आदि तो वहीं सिद्ध होते है, जहाँ कोई सुनिश्चित (Definite) संख्या विद्यमान हो। अनंत तो कोई संख्या नहीं है। ___ विद्वानों ने इस प्रश्न पर बड़ी गहराई से चिंतन किया। अनंत एक ऐसी स्थिति है, जहाँ तक पहुँच जाने के बाद संख्या का कोई अंत नहीं होता। ऐसी अनंतमूलक अनेक कोटियाँ हो सकती हैं । जैसे एक अनंत बार-बार आवर्तित होता है, तब वह भिन्न कोटियों में चला जाता है। यद्यपि अनंतत्त्व तो उन सभी के साथ जुड़ा रहता है किंतु उनमें अपनी-अपनी कोटियों के अनुरूप तरतमता बनी रहती है।
संख्यात-अनन्त, असंख्यात-अनंत तथा अनंतानंत आदि कोटियों के विविध रूप होते हैं। जो अनंत संख्यात की सीमा तक जाता है, वह संख्यात-अनंत, जो अनंत, असंख्यात सीमा तक जाता है, वह असंख्यात-अनंत तथा जो अनंत, अनंत तक जाता है, वह अनंतानंत कहलाता है।
इस प्रकार अनंत की कोटियाँ होती हैं। इसलिये अनंत के साथ गुणा, भाग, जोड़, बाकी चारों सिद्ध हो जाते हैं। अनंत से अनंत के नि:सत होने पर अनंत ही रहता है और फल भी अनंत ही होता
मनुमोदन ते सिद्ध
। प्रकार
फिल के इता है। कर्म, जो
यह गणित की पद्धति विलक्षण तथा वैज्ञानिक है। णमोक्कार मंत्र इस पर सर्वथा सर्वांशत: घटित होता है।
प्राणी अनंतानंत काल से इस भव-सागर में भ्रमण करता रहता है। अनन्त पुद्गल-परावर्तों में गुजरता हुआ कोई भव्य प्राणी जब अंतिम पुद्गल-परावर्त में होता है तब यथाप्रवृत्तकरण द्वारा मिथ्यात्व-ग्रंथी को उच्छिन्न करने की स्थिति में आता है।
णित में
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