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कर सकता ।
कर देव हैं।
प्राप्त उत्तम आप्त है । वे
पति, प्रधान
ल जाते हैं. वहाँ लोभ,
उद्विग्न और
सड़क पर
होते हैं।
लोभ होता
हैं। उससे
न अरिहंत
अवशिष्ट
पद प्राप्त
जो आद -प्रकारेण
है किंतु
सदाचार,
यायार्जित ल जीवन
सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना
निर्वाहोपयोगी भोजन-पान आदि लेकर जीवन पर्यंत प्राणी मात्र के उत्थान में लगे रहते हैं। णमोक्कार मंत्र के तृतीय और चतुर्थ पद की यह गरिमा है ।
णमोकार मंत्र का पाँचवा पद उन अहिंसक सेनानियों का है, जो पाँच महाव्रतों का कवच धारण | किये हुए अपने धर्म नायक का संदेश जन-जन तक पहुँचाने हेतु आजीवन संलग्न रहते हैं। उनका | अपना जीवन इतना पवित्र, निर्मल और तपःपूत होता है कि उनको देखते ही जन-जन में सात्त्विक | भावना का उद्भव होता है। उनकी वाणी में तप का तेज, साधना का माधुर्य और सेवा की सौरभ होती है।
लौकिक साम्राज्य के संचालक, कर्मचारी वृंद के साथ तुलना करने पर यह स्पष्ट होगा कि दोनों में कितना बड़ा अंतर है । ये साधु-पद-वाच्य, कार्यकर्ता, जहाँ अत्यंत त्यागी, ज्ञानयोगी, और कर्मयोगी होते हैं, वहाँ जो राजसत्ता से जुड़े हुए हैं, वे त्याग, कर्तव्यनिष्ठा एवं सेवा में कितनी लगन रखते हैं, यह हम आज स्पष्ट देख रहे हैं ।
आज की राजनीति के संदर्भ में किया गया यह णमोक्कार विषयक विवेचन विश्व के विभिन्न राजनैतिक दलों और समुदाय के लिये एक विचारणीय सामग्री उपस्थित करता है।
णमोक्कार मंत्र का यह संदेश है कि आज के जनसत्तात्मक संस्थान और शासन तंत्र सह अस्तित्व | (co-existance) सहिष्णुता के सिद्धांत को स्वीकार करें, जिससे विनाश की दिशा में अग्रसर होते विश्व | को शांति प्राप्त हो सके ।
राजसत्ता होती है, वहाँ हमेशा न्यायतंत्र होता है और वहाँ अपराधी को दण्ड देने का कानून न्याय नीति परायण लोगों की रक्षा करने का कार्य करता है।
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'कर्म का नियम' तीर्थंकर परमात्मा के साम्राज्य का 'न्यायतंत्र' है । एक मनुष्य एक खून करता है तो उसे फाँसी की सजा होती है । हजार खून करने वाले को भी एक बार ही फाँसी की सजा होती है परंतु कर्मसत्ता सबकी सूची रखती है। सभी को दंड देती है। मनुष्य ने खून किया परंतु पकड़ा नहीं गया तो वर्तमान न्यायतंत्र उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता परंतु तीर्थकर परमात्मा के न्यायतंत्र में उसकी सूची होती है । मन में किये गये सूक्ष्म विचारों की भी कर्मसत्ता सूची रखती है और उसके | शुभ या अशुभ फल देती है।
दुनियाँ में सबसे बड़ा न्यायतंत्र जिनेश्वर भगवंत द्वारा निरूपित कर्म सिद्धांत है, जिससे कोई नहीं
बच सकता ।
जिस प्रकार राजसत्ता के पास न्यायतंत्र होता है और दयातंत्र भी होता है। किसी अपराधी को फाँसी की सजा हुई हो और राष्ट्रपति को यदि वह दया की याचना करे तो राष्ट्रपति उसे माफी दे
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