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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
धनोपार्जन करता है, उसकी अपेक्षा असंख्य गुणा अधिक वैभव- लाभ नवकार मंत्र का आराधक केवल चार सैकेण्ड में प्राप्त कर लेता है।
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लंदन के बाजार में इक्कीस कैरेट का हीरा बेचने के लिये एक व्यापारी आया। वह हीरा एक करोड़ इकसठ लाख में बेचा अतिरिक्त ऐसे एक हजार हीरे उस व्यापारी के पास है। इसके उपरांत उसके पास एक सौ साठ मंजिल का मकान है। इसके अलावा सोलह लाख रूपये की कार, परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के पास ऐसी चार-चार कारें हैं। इसके अतिरिक्त भी अनेक कारें हैं । विश्व की बड़ी संपत्ति इस व्यक्ति के पास है । इस प्रकार वर्तमान जगत् का सबसे बड़ा वैभवशाली यह बहुत व्यक्ति सारा वैभव देकर भी एक ऐसी वस्तु है, जिसे खरीद नहीं सकता । वह है- णमोक्कार मंत्र की आराधना से महर्धिक देवत्व प्राप्त देव के पैर के जूते का एक रत्न । क्योंकि वह रत्न उसकी सारी | संपत्ति से कहीं अधिक मूल्यवान् है ।
अर्थशास्त्र की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र का आराधक सबसे अधिक कमाई करने वाला है। स्वर्ग तो एक भौतिक सुखमूलक उपलब्धि है। सबसे बड़ी उपलब्धि तो अय्यावाध शाश्वत सुख तुलना में मनुष्यलोक और देवलोक का वैभव और सुख जरा भी टिक नहीं सकता । है, जिसकी
आज के नितांत अर्थ-प्रधान युग का यह प्रभाव है- सुख-शांति और आनंद आदि प्राप्त करने के लिए मनुष्य धन के पीछे दौड़ता है। परंतु कितनी ही संपत्ति बढ़े फिर भी सुख-शांति और आनंद प्राप्त नहीं होता।
जब मानव, हृदय में णमोक्कार मंत्र को धारण करता है तो तज्जन्य शाश्वत सुख-शांति और असीम आनंद जीवन में अनुभव कर सकता है। अतः अर्थशास्त्र की दृष्टि से संसार में सबसे अधिक प्रभावशाली णमोक्कार महामंत्र ही है।
समीक्षा
सत्य को अनुभव करने के लिए और आत्मा से परमात्मा बनने के अनेक मार्ग है। विद्वज्जनों के लिए दार्शनिक और तात्त्विक दृष्टि से विवेचन किया जाता है क्योंकि वे तत्त्वज्ञानी होते हैं । वे किसी भी तथ्य को तात्त्विक सिद्धांतों की कसौटी पर कस कर ही स्वीकार करते हैं।
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यही कारण है कि अतीत में हुए महान् आचार्यों, संतों और ज्ञानियों ने णमोक्कार मंत्र का दर्शनशास्त्र या तत्त्व विद्या के आधार पर गहन विवेचन किया है। णमोक्कार मंत्र इतना सूक्ष्म और मार्मिक है कि आज भी उसका अध्ययन कर हम नए-नए तत्त्वों का अनुभव कर सकते हैं।
साधारण लोग तत्त्वज्ञानी नहीं होते। वे सामान्य जीवन जीते हैं। उनका कार्य लोकजनीनता के आधार पर चलता है । जैसा वे देखते और सुनते हैं, उसमें जो उन्हें प्रिय एवं प्रभावकारी प्रतीत होता
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