________________
T
सिद्धत्व पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य
उन्होंने साधुओं में चारित्रिक जागरण हेतु बड़ा प्रयत्न किया। उन द्वारा रचित 'संबोध - प्रकरण' नामक ग्रंथ से यह स्पष्ट है। उनका समय नौवीं ई. शती माना जाता है ।
आचार्य हेमचंद्र
चालुक्यवंशीय गुर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल का शासनकाल गुजरात के सांस्कृतिक | एवं साहित्यिक विकास का स्वर्णिम युग कहा जाता है ।
उसकी निष्पत्ति में आचार्य हेमचंद्र का अद्भुत योगदान रहा। आचार्य हेमचंद्र महान् विद्वान्, कवि | एवं लेखक थे। सिद्धराज जयसिंह के अनुरोध पर उन्होंने सिद्धमशब्दानुशासन नामक व्याकरण की रचना की । व्याकरण के प्रयोगों को व्यक्त करने हेतु उन्होंने 'याश्रय' महाकाव्य रचा जो भट्टि काव्य की तरह संस्कृत की एक अनुपम कृति है। संस्कृत के अध्येता गुजरात में रचित पाठ्य ग्रंथों को अपना सकें, इस हेतु आचार्य हेमचंद्र ने अभिधानचिन्तामणि, देशीनाममाला निघण्टु आदि कोश-ग्रंथों की रचना की प्रमाणमीमांसा, काव्यानुशासन, छंदोनुशासन आदि ग्रंथ भी उन्होंने लिखे । | त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित उन द्वारा रचित अति विशाल प्रबंध काव्य है। परिशिष्ट पर्व भी उनकी एक | महत्त्वपूर्ण कृति है।
1
आचार्य हेमचंद्र की एक अप्रतिम देन यह रही कि उनके उपदेश से गुर्जरेश्वर कुमारपाल ने अपने | समस्त राज्य में अमारि घोषणा की। उसने मांस विक्रेताओं को तीन-तीन वर्ष की आय तथा कृषि भूमि | देकर मांस विक्रय से निवृत्त किया । लगभग १२ वर्ष तक कुमारपाल द्वारा शासित समग्र राज्य में पशुवध T सर्वथा बंद रहा। राज्य में एक भी मांस विक्रय का केंद्र नहीं था । आचार्य हेमचंद्र ने याश्रय महाकाव्य में बड़े ही भावनापूर्ण शब्दों में लिखा है कि संन्यासियों को मृगछालाएं भी अनुपलब्ध हो गई।
अपने असाधारण वैदुष्य एवं गौरवमय साहित्यिक कृतित्व आदि के कारण आचार्य हेमचंद्र अपने 'में 'कलिकालसर्वज्ञ' के विरुद से विभूषित किये गये ।
युग
सार-संक्षेप
जैन धर्म का स्रोत अनादि काल से गतिशील है। यह निःसंदेह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि आज भी जैन धार्मिक परंपरा जैसी भगवान् महावीर के समय में थी, उसी प्रकार साधु-साध्वी धावक| श्राविकामय चतुर्विध धर्म संघ के रूप में अखंडित विद्यमान है। अन्यान्य धार्मिक परंपराएँ आज अपने | प्राचीनतम आचार संहितामूलक रूप में दृष्टिगोचर नहीं होती।
जैन धर्म का साहित्य-भंडार बड़ा विशाल है । आगमों के संबंध में पूर्व पृष्ठों में यह उल्लेख किया
I
41