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सिद्ध पद और णमोक्कार-आराधना
मंत्र-आम्नाय
भारतीय विद्या का क्षेत्र बहुत विशाल है। इसमें ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं पर जो गहन चिंतन, मनन, अनुशीलन और विश्लेषण हुआ है, वह वास्तव में विलक्षण है। भारतीय मनीषियों ने जीवन के हर पक्ष को बहुत ही गहराई से, सूक्ष्मता से देखा और परखा। उनकी दृष्टि केवल बहिरंग ही नहीं रही, उन्होंने सूक्ष्मतम अंतरगता का संस्पर्श भी किया।
भारतीय विद्या के अंतर्गत जैन-विद्या का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन मनीषी ज्ञान और चारित्र के परम आराधक थे। ज्ञान भी स्वाध्याय और चिंतन के रूप में साधना या चारित्र का अंग बन जाता है। जैन-विद्या और साधना के क्षेत्र में मंत्र-विद्या का भी बहुमुखी विकास हुआ। णमोक्कार मंत्र के पदों की आराधना के साथ भी मंत्रात्मक पद्धति को संलग्न किया गया।
"आर्य देश में मंत्र-शास्त्र तथा विद्या-शास्त्र तत्त्व ज्ञान के युग जितने ही प्राचीन हैं। इसके समर्थन में जैन शास्त्रों के अनुसार इस अवसर्पिणी काल में असंख्य वर्ष पूर्व हुए, प्रथम तीर्थंकर भगवान् श्री ऋषभदेव द्वारा अपने प्रथम गणधर शिष्य श्री पुंडरीक स्वामी को दिया गया सूरिमंत्र प्रस्तुत किया जा सकता है। उसी प्रकार उन प्रभु द्वारा दी गयी त्रिपदी के आधार पर श्री पुंडरीक स्वामी द्वारा रचित द्वादशांगी के बारहवें अंग दृष्टिवाद के एक विभाग- दसवें पूर्व 'विद्या-प्रवाद को भी विद्या और मंत्र की प्राचीनता का पूरक कहा जा सकता है।" मंत्र की परिभाषा ___ गहन चिन्तन एवं आत्मानुभवपूर्वक सूक्ष्मतम शब्दों में निक्षिप्त रहस्यात्मक भाव, जिसके मनन द्वारा ज्ञात हो सकें, वह मंत्र है।
'मननात् त्रायते इति मन्त्रः' - इस व्युत्पत्ति के अनुसार मंत्र वह है, जो मनन-मात्र से आराधक का त्राण या परिरक्षण करे।
सिद्ध होने पर मंत्र वास्तव में एक अक्षय-कवच का काम देता है। जिस प्रकार योद्धा को कवच, उस पर होने वाले आघातों से बचाता है, उसी प्रकार मंत्र अपने आराधक की सभी विघ्नों, संकटों और बाधाओं से रक्षा करता है। वह एक आध्यात्मिक कवच है।
१. भुवनभानुनां अजवाळा, पृष्ठ : ३६.
२. श्री नवकार महामंत्र, पृष्ठ : १०.
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