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सिद्ध पद और णमोक्कार-आराधना वह चाहे जिस स्थान में स्थित हो, चाहे जैसी अवस्था में विद्यमान हो तो भी इन नामों को बोल सकता है।
नमस्कार-मीमांसा में पूज्य श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर मंत्र-चैतन्य के उन्मेष का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं :
___ “आम्नाय का अनुसरण, विश्वास का बाहुल्य और ऐक्य का भावन- ये तीन मंत्र-सिद्धि में सहकारी कारण हैं। शब्द, अर्थ और प्रत्यय का परस्पर संबंध है। शब्द से अर्थ की प्रतीति होती है। अर्थात दूर विद्यमान पदार्थ भी शब्द के बल द्वारा विकल्प के रूप में अथवा मानसिक आकृति के रूप में प्रतीत होता है, उपस्थित होता है।
पद का पदार्थ के साथ वाच्य-वाचक संबंध है। पद के उच्चारण, स्मरण अथवा ध्यान द्वारा वाच्य पदार्थ की प्रतीति होती है। शब्दानुसंधान द्वारा अर्थानुसंधान एवं अनुसंधान द्वारा तत्त्वानुसंधान होता है। तत्त्वानुसंधान से स्वरूपानुसंधान होता है।
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णमोक्कार मंत्र में निर्विकल्प आस्था
जैन शासन में आज तक अनेक संप्रदाय बने, शाखा प्रशाखाएँ निकली। उत्तरकालीन जैन साहित्य में घोर पक्षापक्ष की झलक आयी तथापि नमस्कार महामंत्र की निर्विकल्प आस्था पर कोई असर नहीं आया।
हिन्दू धर्म में जो स्थान 'गायत्री-मंत्र का है और बौद्ध-संप्रदाय में जो स्थान 'त्रिशरण' का है, वही स्थान जैन शास्त्र में णमोक्कार महामंत्र' का है।
इस महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार न करके संसारवर्ती सभी वीतराग तथा त्यागी आत्माओं को नमस्कार किया गया है। इस मंत्र में प्रयुक्त सभी आत्माएँ पवित्र जीवन की प्रतिमूर्तियाँ है। जो लोग इन निष्काम विभूतियों के स्वभाव से कुछ लौकिक अभिसिद्धियाँ पाना चाहते हैं, वे भूल करते हैं क्योंकि कुछ मंत्र जहाँ कामना करने से आवश्यकता-पूर्ति करते हैं, वहाँ यह मंत्र निष्काम भाव से जप करने वालों की मनोभावनाएँ पूर्ण करता है।'
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णमोक्कार मंत्र की शक्ति
णमोक्कार मंत्र की शक्ति साक्षात् शुद्ध आत्म-द्रव्य की शक्ति है। एक आत्म-द्रव्य की नहीं किंतु
१. जिनोपासना, पृष्ठ : १५०. ३. नमस्कार महामंत्र (साध्वी राजीमतीजी), पृष्ठ : १.
२. नमस्कार-मीमांसा, पृष्ठ : ३, ४.
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