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सिद्ध पद और णमोक्कार-आराधना
। संसार ता है ? कहा जा
क्ति
है।
इन तीनों व्युत्पत्तियों के द्वारा मंत्र शब्द का अर्थ अवगत किया जा सकता है। णमोक्कार मंत्र ही वह मंत्र है, जिसमें समस्त पापों, दुष्कर्मों को भस्म करने की शक्ति है।'
विशिष्ट मनन सम्यक् ज्ञान का साधन बनता है और वह सम्यक् ज्ञान शुभ भाव जगाकर जीव का रक्षण करता है। अयोग्य मार्ग से योग्य मार्ग पर लगाने वाला मंत्र होता है। सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र में रहना योग्य मार्ग है और मिथ्या ज्ञान, दर्शन, चारित्र में रहना अयोग्य मार्ग है। मंत्र मिथ्यात्व से जीव को छुड़ाकर सम्यक् रत्नत्रय की तरफ ले जाता है।
यह समस्त ब्रह्मांड मंत्र-आबद्ध है। जीवन की प्रत्येक हलचल मंत्र-संचालित है। प्राणि-मात्र का छोटे से छोटा कार्य मंत्र-संबद्ध है, अत: जीवन में मंत्रों के बिना प्राणी के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
जब ब्रह्मांड का अणु-अणु मन्त्रबद्ध है तो जीवन को भलीभांति समझने के लिये मंत्र के मूल रहस्य को हृदयंगम करना भी मानव का पुनीत और प्रथम कर्तव्य है।
तो यह
निश्चित योगिता । इतना
साथ भी
मंत्र और अंतश्चेतना
इसका जिसके
शब्द
किया
अंतश्चेतना से अनुप्रणित होकर ही मंत्र फलप्रद, समर्थ तथा सिद्ध होता है। मानव-शरीर कितना रहस्यमय है, सैकड़ों, हजारों वर्षों से वैज्ञानिक, चिकित्सक, योगी एवं साधक इसके रहस्यों को ज्ञात करने का प्रयत्न कर रहे हैं किंतु अभी तक इस रहस्य को शतांशत: भी जान नहीं सके हैं। फिर भी मानव का वह जिज्ञासामूलक प्रयत्न आज भी गतिशील है, जो भावी पीढी के लिये हितप्रद सिद्ध होगा।
कहा गया है- मंत्र शब्द का मूल अर्थ है- गुप्त परामर्श। श्रद्धा से जब मंत्राक्षर अंतर्दर्शन में प्रवेश कर, एक दिव्य आहिण्डन करते हैं, तब ज्वलंत, जीवंत और जागरित रूप चमक उठता है और वही दिव्य-रूप होकर सिद्धि में परिणत हो जाता है।
सूक्ष्मत: मानव-मन दो भागों में बंटा हुआ है। एक को अंतर्मन या अंतश्चेतना तथा दूसरे को बाह्यमन या बहिश्चेतना कहा जा सकता है। इसमें अंतश्चेतना सर्वदा शुद्धता एवं निर्मलता के साथ सक्रिय रहती है। मनुष्य में असत्य, छल, प्रपंच आदि जो उत्पन्न होते हैं, कार्यशील होते हैं, उसका कारण बहिश्चेतना है, अंतश्चेतना नहीं है।
अंतश्चेतना विशुद्धिपरक होती है। बहिश्चेतना पर अज्ञान, अहंकार, काम, क्रोध, मोह आदि का सघन आवरण पड़ सकता है। वह मनुष्य को उसके वैयक्तिक और सामाजिक मूल्यों से नीचे गिरा
इसका
में का
१. मंगलमंत्र णमोकार एक अनुचिंतन, पृष्ठ : ८. ३. मंत्र रहस्य, (नारायणदत्त श्रीमाली), दो शब्द, पृष्ठ : ३.
२. त्रैलोक्य दीपक, पृष्ठ : ३८०, ३८१. ४. मंत्र-रहस्य, पृष्ठ : १५९.
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