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सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य
इससे आगे के अध्यायों में जैन आगम तथा उत्तरवर्ती जैन साहित्य के आधार पर णमोक्कार महामंत्र का बहुमुखी विश्लेषण, सिद्ध पद का विवेचन, सिद्ध का लक्षण, स्वरुप, भेद, सिद्धत्व-प्राप्ति की दिशा, सिद्धत्व-प्रप्ति का मार्ग, सिद्ध-शिला का स्वरूप इत्यादि विषय समीक्षात्मक दृष्टि से विवेच्य
हैं।
जैन धर्म का परम लक्ष्य अथवा परमोपलब्धि सिद्धत्व है, जहाँ साधक का साध्य सर्वथा सफलसिद्ध हो जाता है, फिर उसके लिए कुछ भी करणीय अवशिष्ट नही रह जाता। सिद्ध-पद सम्प्राप्ति की आराधना में 'णमोक्कार मंत्र' की अनुपम भूमिका है। इस पृष्ठभूमि का अवलम्बन कर साधक सिद्धत्व की दिशा में उत्तरोत्तर गतिशील रहता है, अंतत: साफल्य-मंडित हो जाता है। द्वितीय अध्याय में इन्हीं तथ्यों पर प्रकाश डालने का विनम्र प्रयास किया गया है।
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