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सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य
शिष्य जिनसेनाचार्य ने ४०,००० श्लोक प्रमाण टीका लिखकर पूरा किया। इस टीका का नाम 'जय धवला' है।
धवला और जय धवला में प्राकृत और संस्कृत का मिलाजुला या मिश्रित प्रयोग हुआ है, जैसा श्वेतांबर - आगमों पर रचित चूर्णियों में प्राप्त होता है। धवला टीका में जैन दर्शन एवं धर्म के तत्त्वों के साथ-साथ विविध प्रसंगों पर अन्यान्य दर्शनों एवं सिद्धातों पर भी बड़ी मार्मिक चर्चा की गई है। | वस्तुत: आचार्य वीरसेन अनेक विषयों के प्रखर विद्वान्
थे ।
सिद्धांतचक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र
दसवीं ईस्वी शताब्दी में दक्षिण में नेमिचन्द्र नामक आचार्य हुए, जो सिद्धांत चक्रवर्ती के उपाधि से विभूषित थे। उन्होंने षट्खंडागम के सार रूप में गोमसार तथा लब्धिसार नामक दो ग्रंथ गाथाओं में लिखे, जिनमें जीव-तत्त्व और कर्म-क्षय आदि का विवेचन है ।
प्राकृत
आचार्य कुंदकुंद
जैन परंपरा में आचार्य कुंदकुंद द्वारा रचित समयसार प्रवचनसार, नियमसार तथा पंचास्तिकाय | आदि का आगमों के सदृश ही महत्त्व माना जाता है।
दिगंबर परंपरा में निम्नांकित मंगल सूचक श्लोक बहुत ही प्रसिद्ध है
मंगलं भगवानवीरो, मंगलं गौतमी गणी ।
मंगलं कुंदकुंदार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् । ।
इस श्लोक में गणधर गौतम के पश्चात् आचार्य कुंदकुंद का नामोल्लेख हुआ है, जिससे उनका गौरव स्पष्ट है ।
| आगमोत्तरकालीन जैन साहित्य
आचार्य उमास्वाति
जैन आगम तथा उनके व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त और भी अनेक ग्रंथों की रचना हुई। मुख्यतः ये ग्रंथ दर्शनशास्त्र पर हैं । उनमें अधिकांश ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए। उन ग्रंथों में तत्त्वार्थ| सूत्र बहुत प्रसिद्ध है। यह सूत्रबद्ध रचना है। इसके रचनाकार आचार्य उमास्वाति थे। यह ग्रंथ दिगंबर
१. जैन धर्म, पृष्ठ २६२.
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