________________ नैषधीयचरिते. (फिर ) भड़काये वियोग ( के दुःख ) के कारण अकुलाये हुए नल रनिवास में ( मोहवश ) कल्पित दमयन्ती को देखकर, क्षणानन्तर सचेत हुए उस (दमयन्ती) को न देखते हुए दुःखी हो गये // 16 // टिप्पणी-नल के रूप में कवि यहाँ निराश प्रेमी के हृदय का मार्मिक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर रहा है। क्षण में नैराश्य और क्षण में काम के भड़काव की दुविधा बेचारे प्रेमी के हृदय को झकझोरती रहती है / विषाद भाव के उदय होने के कारण विद्याधर ने यहाँ भावोदयालंकार माना है / 'हस्त' देकर "विहस्त' होना चाहिये था कामदेव को, किन्तु 'विहस्त' (हस्तरहित ) हुए नल-यह विरोधाभास है, जिसका समाधान हस्त शब्द का सहायता और विहस्त शब्द का व्याकुल अर्थ करके हो जाता है। इसके साथ-साथ असंगति भी है / 'हस्ताद्' 'हस्तः' और 'लीका' 'लोक्य' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। प्रियां विकल्पोपहृतां स यावद्दिगीशसंदेशमजल्पदल्पम् / अदृश्यवाग्भीषितभूरिभीरुभवो रवस्तावदचेतयत्तम् // 17 // अन्वय-स विकल्पोपहृताम् प्रियाम् दिगीश-सन्देशम् यावत् अजल्पम् अल्पत् तावत् अदृश्य.."भवः रवः तम् अचेतयत् / टोका–स नल: विकल्पेन कल्पनया भ्रमेणेति यावत् उपहृताम् आनीताम् (त. तत्पु.) मोह-जनितामित्यर्थः प्रियाम् दमयन्तीम् दिशाम् दिशानाम् ईशाः स्वामिनः इन्द्रादयः तेषां सन्देशम् वाचिकम् यावत् यस्मिन् क्षणे अल्पम् किमपि यथा स्यात्तथा अजल्पत् अकथयत् तावत् तस्मिन्नेव क्षणे अदृश्यस्य अन्तहितस्य नलस्य वाचा वाण्या (10 तत्पु० ) भोषिताः भयम् प्रापिताः ( तृ० तत्पु० ) भूरयः बह्वयः भीरवः भयशीलाः स्त्रियः ( सर्वत्र कर्मधा० ) ताभ्यो भवतीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) रवः कोलाहलः तम् नलम् अचेतयत् अबोधयत् निभ्रममकरोदिति यावत् / अदृश्य-सकाशादायातां वाणीमाकर्ण्य भीरुस्त्रियः कोलाहलमकुर्वन्, यमाकर्ण्य नलोऽपगतभ्रमोऽभवत् तूष्णीं चातिष्ठदिति भावः // 17 // व्याकरण-विकल्प वि + V क्लुप् + घम् / ईश: ईष्टे इति + Vईश + क। संदेशः सम + /दिश् + घञ् / भोषितः /भी+ णिच् + क्त ( कर्मणि ) षुगागम / भीरु बिभेतीति / भी + क्रुः ( कर्तरि ) / भवः भवत्यस्मादिति Vभू + अप ( अपादाने ) / रवः रु + अप् ( भावे ) / अचेतयन् चित् +