________________
( 24 ) कण्हलेस्से य नीललेस्से य एवं एएदयासंजोगतियया संजोग चउक्कसंजोगेणं असीइ भंगा भवंति - विषयांकन *५३·१५°६ । पृ० ६६
(२) दूसरी पद्धति में हमने सम्मिश्रित विषयों के पाठों में से पाठ लेश्या से सम्बन्धित नहीं है उसको बाद देते हुए लेश्या सम्बन्धी पाठ ग्रहण किया है तथा बाद दिये हुए अंशों को तीन क्रास ( xxx ) चिह्नों द्वारा निर्देशित किया है, यथा - भग० श २४ । उ १ । सू ७, १२
पज्जत्ता (त्त ) असन्निपं चें दियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएस उववज्जित्तए x x x तेसिणं भंते । जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नन्त्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा-विषयांकन *५८ ११ । गमक १ पृ० १०० । इस उदाहरण में हमने प्रश्न ७ से प्रारम्भिक पाठ लेकर अवशेष पाठ को बाद दे दिया है तथा उसे क्रास चिह्नों द्वारा निर्देशित कर दिया गया है । प्रश्न ५, ६, १० तथा ११ को भी हमने बाद देकर प्रश्न १२ जो लेश्या सम्बन्धी है ग्रहण कर लिया है । कई जगहों पर इन पद्धतियों के अपनाने में असुविधा होने के कारण हमने पूरा का पूरा पाठ ही दे दिया है ।
मूल पाठों में संक्षेपीकरण होने के कारण अर्थ को प्रकट करने के लिए हमने कई स्थलों पर स्वनिर्मित पूरक पाठ कोष्ठक में दिये हैं- यथा— कडजुम्म - कडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते x x x ( कइ साओ पन्नत्ताओ ) ? कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा | Xxx एव भाणियव्वं - विषयांकन ८६ ६ । पृ० २२० । यहाँ कई लेसाओ पन्नत्ताओ पाठ जो कोष्ठक में है सूत्र संक्षेपीकरण में बाद पड़ गया था उसे हमने अर्थ की स्पष्टता के लिए पूरक रूप में दे दिया है ।
सोलससु वि जुम्मेसु
वर्गीकृत उपविषयों में हमने मूल पाठों को अलग-अलग विभाजित करके भी दिया है यथा - ' एवं सक्करप्पभाए वि' विषयांकन ५३ ३ । पृ० ६३ । कहींकहीं समूचे पाठ को एक वर्गीकृत उपविषय में देकर उस पाठ में निर्दिष्ट अन्य वर्गीकृत उपविषयों में अन्य मूल पाठ को बार-बार उद्धृत न करके केवल इ ंगित कर दिया है । यथा—'५८'३१·१ में ५८ ३०१ के पाठ को इ ंगित कर दिया गया है ।
यथा सम्भव वर्गीकरण की सब भूमिकाओं में एकरूपता रखी जायेगी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org