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वस्तुस्वभाव-भीमांसा स्वतन्त्र कोई वस्तु नहीं है, मात्र स्वरूपसत्ताको लक्ष्य कर वह कल्पित की गई है। यही कारण है कि प्रकृतमें सब पदार्थों में 'सत्' ऐसा कथन और 'सत्' ऐसा ज्ञान होनेसे व्यवहारसे उसे स्वीकार किया गया है।
तथा वह सत्ता सविश्वरूप है, क्योंकि वह समस्त विश्वके रूपों सहित अर्थात् त्रिलक्षणवाले स्वभावोंके साथ सदा काल विद्यमान रहती है, क्योंकि विश्वके समस्त पदार्थोंमें त्रिलक्षणरूप स्वभावका कभी भी अभाव नहीं होता।
तथा वह अनन्त पर्यायस्वरूप है, क्योंकि वह त्रिलक्षणस्वरूप अनन्त द्रव्य-पर्यायस्वरूप व्यक्तियोंके द्वारा परिगम्यमान है। यहाँ पर त्रिलक्षणके अन्तर्गत ध्रौव्य पदसे समस्त द्रव्य अभिहित किये गये हैं और उत्पाद-व्यय शब्दसे उनकी पर्यायें अभिहित की गई हैं।
यद्यपि सामान्य सत्ता ऐसी है तथापि वह प्रतिपक्ष सहित है । सत्ताका प्रतिपक्ष असत्ता है, त्रिलक्षणाका अविलक्षणा प्रतिपक्ष है, एकका अनेकपना प्रतिपक्ष है, सर्व पदार्थ स्थिताका एक पदार्थ स्थितत्त्व प्रतिपक्ष है, सविश्वरूपाका एकरूपत्व प्रतिपक्ष है, अनन्त पर्यायोंका एक पर्यायत्व प्रतिपक्ष है। __ सत्ता दो प्रकार की है-महासत्ता और अवान्तर सत्ता। उनमेंसे सर्व पदार्थ-व्यापिनी सादश्य अस्तित्त्वका सूचन करनेवाली महासत्ताका पहले ही कथन कर आये हैं। यहाँ जो उसकी प्रतिपक्ष असत्ता कही गई है वही अवान्तर सत्ता है। वही प्रत्येक वस्तुयें रहकर उसके स्वरूपास्तित्वको सूचित करती है। यहाँ पर महासत्ता अवान्तर सत्तारूपसे असत्ता है और अवान्तर सत्ता महासत्तारूपसे. असत्ता है, इसलिये महासत्ताकी अवान्तर सत्ता प्रतिपक्ष है।
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप होनेसे सत्ता त्रिलक्षणा है यह पहले ही लिख आये हैं । सत्ता इस स्वभाववाली होकर वह प्रतिपक्ष सहित है। त्रिलक्षणा सत्ताका प्रतिपक्ष अविलक्षणा है, क्योंकि जिस स्वरूपसे उत्पाद है उसका (अत्रिलक्षणा सत्ताका) उस स्वरूपसे उत्पाद ही लक्षण है, जिस स्वरूपसे व्यय है उसका उस स्वरूपसे व्यय ही लक्षण है और जिस स्वरूपसे ध्रौव्य है उसका उस स्वरूपसे ध्रौव्य ही लक्षण है । तात्पर्य यह है कि उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य परस्पर अनुस्यूत होकर भी कथञ्चित् भिन्न हैं, इसलिये