________________
उभयनिमित-मीमांसा
१२३
द्रव्य नियत पर्यायकी स्थितिमें पहुँचने पर ही वह विवक्षित कार्यका निश्चय उपादान होता है । (३) सापेक्ष कथन व्यवहारनयका विषय है, इसलिए कालको सहकारी कारण कहना असभूत व्यवहारनयसे ही घटित होता है । (४) निश्चयनय परनिक्षेप ही होता है ।
१० शंका-समाधान
शंका - प्रकृतमें आप उपादानके पूर्व निश्चय विशेषण क्यों लगाते हैं ।
समाधान - प्रत्येक द्रव्यमें अपना-अपना कार्य करनेकी योग्यता होती है पर प्रत्येक द्रव्य पर्यायसे व्यतिरिक्त स्वतन्त्र नहीं पाया जाता और पर्यायें काल द्रव्यके जितने समय होते हैं उतनी ही होती है, इसलिए निश्चयसे किस पर्यायके बाद अगले समयकी कौन पर्याय होगी इसका नियमन प्रत्येक समयकी पर्यायके आधारपर ही होता रहता है । व्यवहार से काल द्रव्यके विवक्षित समयके आधार पर भी उसका परिगमन किया जा सकता है । अतः १२ वें गुणस्थानके प्रथम समयसे चारित्र एक प्रकारका होनेसे यहाँ कालकी मुख्यतासे उक्त कथन किया गया है। यही कारण है कि प्रत्येक द्रव्यमें अपने-अपने कार्यरूप परिणमनेकी योग्यता के रहते हुए भी कार्यकारण परम्परामें अव्यवहित पूर्वं पर्याय युक्त द्रव्य को ही परमार्थसे उपादान स्वीकार कर उससे नियत कार्यकी उत्पत्ति स्वीकार की गई है । विवक्षित उपादान के पूर्व निश्चय विशेषण लगाने का यही कारण है ।
शंका- योग्यता क्या वस्तु है ?
समाधान - समाधान यह है
योग्यता हि कारणस्य कार्योत्पादनशक्ति | कार्य हि कारणजनत्वशक्तिस्तस्याः प्रतिनियमः । शालिबीजांकुरयो . भिन्नकालत्वाविशेषेऽपि शालिबीजस्येति कथ्यते । श्लो० वा० गा० ७८ ।
कारणकी कार्यको उत्पादन करनेकी शक्तिका नाम योग्यता है.... और कार्य कारणपूर्वक जन्यत्व-शक्तिवाला होता है। इसीका नाम योग्यताका प्रतिनियम है। जैसे शालि बीज और अंकुरमें भिन्न कालपनेरूप विशेष होने पर भी शालि-बीजमें ही शालि-अंकुरके उत्पन्न करनेकी शक्ति है, यव बीजमें नहीं । वैसे ही यब बीजमें ही यव- अंकुर को उत्पन्न करनेकी शक्ति है, शालि -बीजमें नहीं यह कहा जाता है ।
1