________________
२५२
जैनतत्त्वमीमांसा निश्चय मोक्षमार्ग या निश्चय रत्नत्रय भो कहते हैं। जितने भी तीर्थकर हुए हैं वे एकमात्र इसी धर्मको जीवन बनाकर मोक्षके पात्र हए हैं, मोक्ष प्राप्त करनेका अन्य कोई उपाय नहीं है। देखो प्रवचनसार ८१, ८२ गाथाएँ। ___ शंका-यदि यह बात है तो भगवान् अरहन्तदेवको चरणानुयोगका उपदेश ही नहीं देना चाहिये था ? | समाधान-निश्चय रत्नत्रयरूपसे परिणत हुए जीवके अविनाभाव
सम्बन्धवश बाह्यमे कहाँ किस प्रकारकी मन, वचन और कायकी प्रवृत्ति Mहोती है यह बतलानेके लिये भगवान् अरहन्तदेवने चरणानुयोगका उपदेश दिया है और इसीलिये ही उसे निश्चय रत्नत्रयका साधक कहा है।
(१२) केवलज्ञान स्वभावके लक्ष्यसे ही उत्पन्न होता है, परकी ओर झुकावसे नहीं इसलिये वह स्व-परप्रत्ययपर्याय न होकर उसे आगम स्वप्रत्यय पर्याय ही स्वीकार करता है। जो अपने ज्ञायक स्वभावमें समग्रभावसे लोनता करता है उसे केवलज्ञानकी उत्पत्ति होती है ऐसा नियम है। उसके ज्ञानावरणादि कर्मोका स्वय अभाव हो जाता है यह दूसरी बात है। आगममें जो ज्ञानावरणादिके क्षयसे केवलज्ञान होता है ऐसा कहा गया है वह मात्र अविनाभाव सम्बन्धको देखकर ही कहा गया है । इसका यह तात्पर्य तो है नही कि चाहे कोई अपने त्रिकाली ज्ञायकस्वभावमे समग्रभावसे लीनता न भी करे तो भी उसे ज्ञानावरणादिके क्षयसे केवलज्ञान हो जायगा । जब ऐसा नही है तो इस आत्माका मुख्य कर्तव्य अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभावमे लीनता करना ही हो जाता है, क्योंकि ऐसा किये बिना उसके ज्ञानावरणादिके क्षयपूर्वक केवलज्ञानकी उत्पत्ति नही हो सकती। ऐसा करनेसे जहाँ उसे केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है वहाँ उसके ज्ञानावरणादि कर्मोंका स्वय अभाव भी हो जाता है। मुख्य कर्तव्य तो उसका अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभावमे लीनता करना ही है, ज्ञानावरणादि कर्मोका क्षय करना नही ।
(१३) बाह्य निमित्त कार्यको उत्पन्न नहीं करते, कार्यको उत्पन्न तो निश्चय उपादन ही करता है, इसलिये इस दृष्टिसे बाह्य निमित्तोंकी उपयोगिता नहीं है। किस समय किस द्रव्यने क्या कार्य किया यह सूचन करनेकी दृष्टिसे यदि कोई बाह्य निमित्तोंकी उपयोगिता मानता है तो । इसमें आगमसे कोई बाधा भी नहीं आती। अब रही उपादानकी बात सो