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बनेकान्त स्वाादमीमांसा . , " ३७३ पर्यायवाला हो वह द्रव्य है इतना कहने पर, जो गुणवाला है बह द्रव्य है ऐसा कहना निरर्थक है, क्योंकि सभी द्रव्यों में पर्यायोंकी अनुत्ति देखी जाती है। और यदि जो गुणवाला हो वह द्रव्य है. ऐसा कहने पर जो पर्यायवाला हो वह द्रव्य है ऐसा कहना व्यर्थ है, क्योंकि सभी द्रव्य गुणवाले देखे जाते हैं, इसलिये द्रव्यका लक्षण उभयरूप किसलिये कहा गया है?
यह एक शंका है । इसका समाधान करते हुए भाचार्य विद्यानन्द कहते हैं
गुणवद् द्रव्यमित्युक्तं सहानेकान्तसिद्धये ।
तथा पर्यायवद् द्रव्य कमानेकान्तसिद्धये ।।२।। पृ० ४३८ । जो गुणवाला हो वह द्रव्य है यह वचन सह अनेकान्तको सिद्धिके लिये कहा गया है तथा जो पर्यायवाला हो वह द्रव्य है यह वचन क्रम अनेकान्तकी सिद्धिके लिये कहा गया है ।। २॥
आशय यह है कि प्रत्येक द्रव्य युगपत् अनेक धोका आधार है। इस प्रकार परस्पर विरुद्ध अनेक धर्मोका सद्भाव एकद्रव्यमें बन जाता है इसलिये सह अनेकान्तकी सिद्धिके लिये द्रव्यका जो गुणवाला हो वह द्रव्य है यह लक्षण योजित किया गया है। परन्तु जो द्रव्यजात है वह नित्य होनेके साथ परिणामी भी है इस प्रकार क्रम अनेकान्तकी सिद्धिके लिये द्रव्यका जो पर्यायवाला हो वह द्रव्य है यह लक्षण कहा गया है।
इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य परस्पर विरुद्ध अनेक धर्मों का आधार होनेके साथ कथंचित् (किसी अपेक्षासे) नित्य ही है और कचित् (किसी अपेक्षासे) भनित्य ही है यह सिद्ध हो जाता है।
इस प्रकार प्रत्येक द्रव्यके अपेक्षा मेदसे तत्-अतत्, एक-अनेक, सत्असत् और नित्य-अनित्य सिद्ध होनेमें कोई बाधा नहीं आती। ___ शंका-यदि सापेक्ष दृष्टिसे वस्तुको अनेकान्तात्मक माना जाता है तो प्रत्येक वस्तु स्वरूपसे अनेकान्तरूप है यह नहीं सिद्ध होता? .
समाधान-अनेकान्त यह वस्तुका स्वरूप है, क्योंकि अपने स्वरूप को ग्रहणकर और परके स्वरूपका अपोहनकर स्थित रहना यह बस्तुका वस्तुत्व है। इसलिये अपेक्षा भेदसे अनेकान्तरूप वस्तुको सिद्धि करना अन्य बात है। स्वरूपकी दृष्टिसे देखा जाय तो निरपेक्षरूपसे वह स्वयं ही अनेकान्तमय है।