Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ashok Prakashan Mandir

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Page 433
________________ जेनतत्त्वमीमांसा समाधान- किन्तु उनकी यह मान्यता युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि जो सब द्रव्योंको जानता है वह उनकी त्रिकालवर्ती सब पर्यायोंको भी ता है, क्योंकि तीनों कालकी पर्यायोंके तादात्म्यरूपसे समुच्चयका नाम ही द्रव्य है, इससे जिसने सभी द्रव्योंको जाना उसने उनकी सब पर्यायोंको भी जाना यह सिद्ध होता है, क्योंकि पूरे द्रव्यके जाननेमें उसकी तीनोंकाल सम्बन्धी पर्यायोंका जानना अन्तर्निहित है ही । इस तथ्यको आचार्य अमृतचन्द्रदेवने प्रवचनसार गाथा ३७ की तत्त्वप्रदीपिका टीकामें अनेक प्रकारसे स्पष्ट करके बतलाया है। इसके लिये एक उदाहरण उन्होंने चित्रपटका लिया है। वे लिखते हैं ४०० चित्रपटो स्थानीयत्वात् संविदः । यथा हि चित्रपट्यामतिवाहितानामनुपस्थितानां वर्तमानानां च वस्तूनामा लेख्याकार साक्षादेकक्षण एवावभासन्ते तथा संविद्भित्तावपि । उपयुक्त ज्ञान चित्रपटस्थानीय है । जैसे चित्रपटमें अतीत, अनागत और वर्तमानकालीन वस्तुओंके चित्र साक्षात् एक समय में ही प्रतिभासित होते हैं उसी प्रकार ज्ञानरूपी भित्तिमे भी सब द्रव्य और उनकी सब पर्यायें प्रतिभासित होती हैं । इसी तथ्यको वे और भी स्पष्ट करते हुए लिखते हैं fee सर्वज्ञेयाकाराणां तादात्त्रिकाविरोधात् । यथा हि प्रध्वस्तानामनुदितानां च वस्तूनामालेख्याकारा वर्तमाना एव तथातीतानामनागताना च पर्यायाणां ज्ञेयाकारा वर्गमाना एव भवन्ति । वस्तुस्थिति यह है कि जितने भी ज्ञेयाकार हैं उन सबके वर्तमानकालीनरूपसे प्रतिभासित होने में कोई विरोध नहीं आता, क्योंकि जैसे अतीत और अनागत वस्तुओंके चित्र वर्तमान ही है, उसी प्रकार अतीत और अनागत पर्यायोसम्बन्धी ज्ञेयाकार वर्तमान ही हैं । इस तथ्य की पुष्टि छद्मस्थज्ञानसे भी होती है । छद्मस्थके ज्ञानसे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान तो लिये ही गये हैं, अवधिज्ञान और मन. पर्यंय ज्ञानका भी ग्रहण होता है। ये दोनों ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादाके साथ अतीत और अनागत पर्यायोंको भी जानते हैं । मतिज्ञान भले ही योग्य सन्निकर्षमें स्थित इन्द्रियों द्वारा वर्तमान विषयको जानता है, पर श्रुतज्ञान मात्र वर्तमान विषयको ही जानता हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। जो घटना पहले कभी हो गई हो उसका ख्याल आने पर

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