Book Title: Jain Tattva Mimansa
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ashok Prakashan Mandir

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Page 434
________________ केवलनामांसा... ४०४. वर्तमानमें हो रही पटनाके समान उसका प्रतिभास होने लगता है। चाहे अतीत पर्यायें हों या भविष्यत् पर्यायें हों उनके शानमें प्रतिमास वर्तमानवत ही होता है, क्योंकि बत्तीस और अनागत विषयको माननेवाली जानपर्याय वर्तमान है, इसलिए विषयकी अपेक्षा भले ही विषयको अतीतअनागत कहा जाय, परन्तु उनको बर्तमानमें जाननेवाले शानपरिणामको . अतीत-अनागत नहीं कहा जा सकता, इसलिए प्रत्यम शान मत्तीत-बनागत विषयोंको वर्तमानबत् जानता है यह स्वीकार किया गया है। ७ कुतकाधित मतका निरसन १ बहुतसे मनीषियोंका ऐसा भी कहना है कि आकाश अनन्त है, अतीत-अनागत काल भी अनन्त है। इसी प्रकार जीव और पुद्गल द्रव्य भी अनन्त हैं। ऐसी अवस्थामें केवलज्ञानके द्वारा यदि उन अनन्त पदार्थोका पूरा ज्ञान मान लिया जाता है तो उन सबको अनन्त मानना नहीं बनता। यदि उनकी इस बातको और अधिक फैला कर देखा जाय तो यह भी कहा जा सकता है कि यदि केवलज्ञान सब द्रव्यों और उनकी सब पर्यायोंको युगपत् जानता है तो न तो जीव पदार्थ ही अनन्त माने जा सकते हैं और न पुद्गल द्रव्य ही अनन्त माने जा सकते हैं। अकाशद्रव्य तथा भूत और भविष्यत् काल अनन्त है यह भी नहीं कहा जा सकता है। २. उनका यह भी कहना है कि जब प्रत्येक छह मास और आठ समयमे छह सौ आठ जीव मोक्ष जाते हैं तब एक समय ऐसा भी आ सकता है जब मोक्षका मार्ग ही बन्द हो जायगा। संसारमें केवल अभव्य जीव ही रह जायेंगे। यो तो जो अपने छद्मस्थ ज्ञानके अनुसार अनन्तकी सीमा बाँधनेमें और केवल ज्ञानको सामर्थ्यके निष्कर्ष निकालने में पट हैं उनके द्वारा इस प्रकारके कुतर्क पहले भी उठाये जाते थे। किन्तु जबसे सब द्रव्योंकी पर्यायें क्रमनियमित (कमबख) होती हैं यह तथ्य प्रमुखरूपसे सबके सामने आया है सबसे वर्तमानमें भी ऐसे कुतर्क उन विद्वानोंके द्वारा उपस्थित किये जाने लगे हैं जिनके मनमें यह शल्य घर कर गई है कि केवलज्ञानको सब द्रव्यों और उनकी सब पर्यायोंका माता मान, लेने पर सोनगढ़के विरोधमें जो हमारी ओरसे हल्ला किया जा रहा है वह निर्बल पड़ जाममा। वे नहीं चाहते कि बाम जनतामें सोनगइकन प्रभाव बढ़े, इसलिए वे केवलज्ञानकी सामर्थ्य पर ही उक्त प्रकारके कुतर्क करने लगे हैं।

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