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उभयनिमित्त-मीमांस
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योग्यता से सीतों एक ही अर्थको सूचित करते हैं । कहीं कहीं अनादि या नित्य उपादानको भी भवितव्यता या योग्यता शब्द द्वारा अभिहित किया गया है सो प्रकरणके अनुसार इसका उक्त अर्थ करने में भी कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि भवितव्यतासे उक्त दोनों अर्थ सूचित होते हैं । भव्य और अभव्यके भेदमें भवितव्यता भी इसीका नाम है । उक्त श्लोकमें भवितव्यताको प्रमुखता दी गयी है और साथमें व्यवसाय पुरुषार्थ तथा अन्य सहायक सामग्रीका भी सूचन किया है सो इस कथन द्वारा उक्त पाँचों कारणोंका समवाय होने पर कार्यकी सिद्धि होती है यही सूचित होता है, क्योंकि स्वकाल उपादानकी विशेषता होनेसे भक्त्तिव्यतामें गर्भित है ही ।
भवितव्यका समर्थन करते हुए पण्डितप्रवर टोडरमलजी मोक्षमार्गप्रकाशक (अधिकार ३, पृष्ठ ८१) में लिखते हैं
सो इनकी सिद्धि होइ तो कषाय उपगमनेते दुःख दूरि होइ जाइ सुखी होइ । परन्तु इनकी सिद्धि इनके किए उपायनिके आधीन नाहीं, भवितव्यके आधीन है । जातै अनेक उपाय करते देखिये है अर सिद्धि न हो है । बहुरि उपाय बनना भी अपने आधीन नाही, भवितव्य के आधीन है । जाते अनेक उपाय करना विचार और एक भी उपाय न होता देखिए है । बहुरि काकतालीय न्यायकरि भवितव्य ऐसी ही होइ जैसा आपका प्रयोजन होइ तैसा ही उपाय होइ अर तातै कार्यकी सिद्धि भी होइ जाइ तौ तिस कार्यसंबंधी कोई कषायका उपशम होइ ।
यह पण्डितप्रवर टोडरमलजीका कथन है। मालूम पड़ता है कि उन्होंने 'तादृशी जायते बुद्धि' इस श्लोक में प्रतिपादत तथ्यको ध्यानमें रख कर ही यह कथन किया है। इसलिए इसे उक्त अर्थके समर्थन में ही जानना चाहिए ।
इस प्रकार कार्योत्पत्तिके पूरे कारणों पर दृष्टिपात करनेसे भी यही फलित होता है कि जहाँ पर कार्योत्पत्तिके अनुकूल द्रव्यका स्ववीर्य या स्वशक्ति और उपादान शक्ति होती है वहाँ अन्य सामग्री स्वयमेव मिल जाती है, उसे मिलाना नहीं पड़ता । यह मिलाना क्या है ? यह एक विकल्प है तथा तदनुकूल वचन और कायकी क्रिया है, इसीको मिलाना कहते हैं । इसके सिवाय मिलाना बौर कुछ नहीं ।
वास्तवमें देखा जाय तो यह कथन जैनदर्शनका हार्द प्रतीत होता है । जनदर्शन में कार्यकी उत्पत्तिके प्रति जो उपादान-निमित्त सामग्री
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