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कर्तृकर्मीमांसा
है । उस दर्शनके अनुसार कर्ता वह हो सकता है जिसे कारकसाकल्यका पूरा ज्ञान हो और जो अपनी इच्छासे कारकसाकल्यको जुटाकर कार्यको उत्पन्न करनेके प्रयत्न में लगा हो । यहाँ इतना और समझना चाहिए कि जो जिसका कर्ता होता है वह नियमसे उस कार्यको उत्पन्न करता है । ऐसा नहीं होता कि उसके विवक्षित कार्यका कर्ता होनेपर भी कभी कार्यं उत्पन्न हो और कभी न हो । कार्य उत्पत्तिके साथ उसकी व्याप्ति है । अब विचार कीजिए कि नैयायिकदर्शनके अनुसार क्या ये गुण ईश्वरको छोड़कर अन्य बाह्य निमित्तोंमें उपलब्ध हो सकते हैं अर्थात् नहीं हो सकते । इससे स्पष्ट है कि नैयायिकदर्शनके अनुसार ईश्वरको छोड़कर अन्य निमित्त कर्ता नहीं हो सकते । इस प्रकार जब नैयायिकदर्शनकी यह स्थिति है तो जो जैनदर्शन सब द्रव्योंको स्वभावसे उत्पाद, व्यय और धौव्य स्वभाववाला मानता है उसके अनुसार अन्य निमित्त सब द्रव्योंकी पर्यायों (कार्यों) के उत्पादक हो जायँ यह तो त्रिकालमें सम्भव नही है । एक ओर तो हम मंच पर ऊँचे हाथ उठाकर और गाल फुलाकर लोकको अकृत्रिम होनेकी घोषणा करते फिरें और दूसरी ओर द्रव्यलोक और गुणलोकके सिवा पर्यायलोकको कृत्रिम (अन्यका कार्य) मानने लगें इसे उक्त घोषणाका विपर्यास न कहा जाय तो और क्या कहा जाय । पर्यायलोकको या तो स्वभावसे उत्पाद, व्यय और धीव्य इन सीन भेदोंमें विभक्त द्रव्यरूप मानो या अन्य किसीका कार्य मानो इन दो विकल्पोंमेंसे किसी एकको ही मानना पड़ेगा । यदि उसे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीन भागों में विभक्त स्वभावसे मानते हो तो पर निमित्तोंको स्वीकार करके भी उसे उनका कार्य मत मानो । एक अपेक्षासे वह स्वयं कारण (कर्ता) है और दूसरी अपेक्षासे वह स्वयं कार्य है ऐसा मानो और यदि उसे अन्य किसीका कार्य मानते हो तो ईश्वरका निषेध मत करो । एक ओर ईश्वरका निषेध करना और दूसरी ओर उसके स्थानमें अन्यको कर्ता रूपसे ला बिठाना यह कहाँका न्याय है ।
aran विभाव पर्यायोंको जो स्वपरप्रत्यय कहा है सो गलत नहीं कहा हैं परन्तु उस कथनके यथार्थं अर्थको समझे बिना मूल वस्तुकी मुख्यताको भुलाकर उसके कार्यको परनिमित्तके आधीन कर देना तो न्याय नहीं है । पर यदि बाह्य निमित्त मूल वस्तुके समान कार्यको उत्पन्न नहीं करते हैं तो उन्हें इसरूपमें स्वीकार करनेसे क्या लाभ है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि नैयायिक दर्शनमें स्वीकार किये गये ईश्वर ( प्रेरक कारण ) के स्थानमें जैनदर्शनके अनुसार मूल वस्तुको स्वीकार कर लेने
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