________________
१२२
जनतस्व-मीमांसा प्रत्यासन्नमुक्तीनामेव भव्यानां दर्शनमोहप्रतिपक्ष. संपद्यते नान्येषाम्, कदाचित्कारणासन्निधानात् । तत्त्वार्थश्लोकवा०, पृ० ९१ ।।
जिनको मोक्ष प्राप्त होना अति सन्निकट है ऐसे भव्य जीवोंके ही मिथ्यावर्शन आदिके प्रतिपक्षभूत निश्चय सम्यग्दर्शन आदिकी प्राप्ति होती है, अन्य भव्योंके नहीं, क्योंकि अन्तरंग-बहिरंग कारणोंका सन्निधान कदाचित् होता हो ऐसा नहीं है, क्योंकि निश्चय सम्यग्दर्शनके पूर्व अव्यवहित पूर्व जो पर्याय युक्त जीव होता है उसीमें ऐसी योग्यता होती है कि उसके अव्यवहित उत्तर समयमेंनिश्चय सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होना निश्चित है । यथा
निश्चयनयाश्रयणे तु यदनन्तरं मोक्षोत्पादस्तदेव मुख्य मोक्षस्य कारणमयोगिकेवलिचरमसमयवर्ति रत्नत्रयमिति । त० श्लो० पृ० ७१ ।।
निश्चयनयका आश्रय करने पर तो जिसके बाद मोक्षकी उत्पत्ति होती है वही अयोगिकेवलीका अन्तिम समयवर्ती रत्नत्रय. परिणाम मोक्षका मुख्य कारण है।
पर्याय विशेष युक्त द्रव्यमे निश्चय उपादानताका समर्थन करते हुए उसी परमागमके इस वचन पर भी दृष्टिपात कीजिये
ते चारित्रस्योपादानम्, पर्यायविशेषात्मकस्य द्रव्यस्योपादानत्वप्रतीतेः ।
वे निश्चय सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान निश्चय चारित्रके उपादान कारण हैं,क्योंकि पर्यायविशेषसहित द्रव्यमें ही उपादानपनेकी प्रतीति होती है।
ऐसा नियम है कि निश्चय सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानके साथ बारहवें गुणस्थानके प्रथम समयमें ही क्षायिक व्यवहारके योग्य निश्चय चारित्र की प्राप्ति हो जाती है, फिर भी यह जीव मोक्षको प्राप्त नहीं होता। यह एक प्रश्न है इसका समाधान करते हुए आचार्य विद्यानन्द कहते हैं
क्षीणकषायप्रथमसमये तदाविर्भावप्रसक्तिरिति न वाच्या, कालविशेषस्य सहकारिकारणापेक्षस्य तदा विरहात् । श्लो० वा० पृ० ७१ ।।
शंका-क्षीणकषायके प्रथम समयमें मोक्षोत्पादका प्रसंग प्राप्त होता है?
समाधान-ऐसा नही कहना चाहिए, क्योंकि ( व्यवहारनयसे ) अपेक्षित काल विशेषका वहाँ अभाव है।
यह ऐसा उल्लेख है जिससे अनेक तथ्योंपर प्रकाश पड़ता है । (१) नियत पर्यायका नियत काल ही व्यवहार हेतु होता है। (२) प्रत्येक