________________
बाह्यकारणमीमांसा
६३
अज्ञ पुरुष विज्ञपनेको प्राप्त नहीं होता और विज्ञ पुरुष अज्ञपनेको प्राप्त नहीं होता । अन्य पदार्थ (व्यवहारसे) दूसरे द्रव्यके कार्य में ऐसे ही निमित्तमात्र हैं जैसे गति क्रियाका निमित्त धर्मं द्रव्य होता है ।
तत्त्वार्थवार्तिक अ० १ सूत्र २० के भाष्य में यह वचन आया है
यथा मृदः स्वयमन्र्भवनघटपरिणामाभिमुख्ये दण्ड-चक्र- पौरुषेयप्रयत्नादिनिमित्तमात्रं भवति 1
जैसे मिट्टी के स्वयं (स्वभावसे) घट होने रूप परिणामके सन्मुख होने पर दण्ड, चक्र और पौरुषेय प्रयत्न निमित्तमात्र होता है । सो उससे भी उक्त तथ्यका ही समर्थन होता है ।
इस प्रकार परमागममें व्यवहारसे जो प्रयोग निमित्त और विस्त्रसा निमित्त इन दो प्रकार के हेतुओंका कथन किया गया है वह किस दृष्टिसे किया गया है इसका यहाँ विचार किया ।
शंका - जयधवला भाग १ पृ० २६१ आदि में प्रत्यय कषाय और समुत्पत्तिकषायमे जो भेद किया गया है सो क्यो ?
समाधान - यतिबृषभ आचार्यने स्वयं इन दोनोंमें अन्तरका खुलासा किया है । उसका आशय यह है कि यतः कर्मोदयको निमित्तकर कषाय होती है, अतः कर्मोदयका नाम प्रत्यय कषाय है और अन्य मनुष्य तथा लकडी आदिको निमित्त कर जो कषाय उत्पन्न होती है, उन मनुष्य तथा लकडी आदिको समुत्पत्ति कषाय कहते हैं । इन दोनोंका स्पष्टीकरण करते हुए आचार्य वीरसेन लिखते है
जीवादी अभिण्णो होदूण जो कसाए समुप्पादेदि सो पच्चओ णाम, भिण्णो होण जो ममुप्पादेदि सो समुत्पत्तिओ त्ति दोन्हं भेदुवलंभादो ।
जो जीवसे अभिन्न होकर कषायको उत्पन्न करता है वह प्रत्यय कषाय है और जो जीवसे भिन्न होकर कषायको उत्पन्न करता है वह समुत्पत्तिकषाय है ।
इस कथन से असद्भूत व्यवहारनयके जो अनुपचरित और उपचरित ये भेद किये गये है उनका ज्ञान हो जाता है।
शंका-कर्मोदयको जीवसे अभिन्न कैसे माना जाय ? समाधान-तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक पृ० ४३० में इस शंकाका समाधान करते हुए कहा है
जीव-कर्मणोबंध. कथमिति चेत् ? परस्परं प्रवेशानुप्रवेशान्म त्वेकपरिणामात्