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जेनतत्वमीमांसा कालप्रत्यासत्तिविशेषात् तसिद्धिः । यदनन्तरं हि यदवयं भवति तत्तस्य सहकारि कारणमितरत्कार्यमिति प्रतीतम् ॥१५॥
शंका-सहकारी कारणके साथ कार्यका कार्य-कारणभाव कैसे हो सकता है, क्योंकि सहकारी कारण भिन्न द्रव्य है और कार्यरूपसे परिणत द्रव्य उससे भिन्न द्रव्य हैं, इन दोनोंमें एक द्रव्यप्रत्यासत्तिका अभाव है ?
समाधान-इन दोनों द्रव्योंमें कालप्रत्यासत्ति विशेष होनेसे कार्यकारणभावकी सिद्धि हो जाती है। यह प्रतीतसिद्ध है कि जिसके अनन्तर जो नियमसे होता है वह सहकारी कारण है दूसरा कार्य है। __यहाँ सहकारी कारण और कार्यमें कालप्रत्यासत्ति होनेपर ही उनमे कार्य-कारणभाव स्वीकार किया गया है। इसकी पुष्टि परीक्षामुखसे भी होती है।
बौद्ध मानते हैं कि रात्रिमें सोते समयका ज्ञान प्रातःकालके ज्ञानका कारण है और भावी मरण पूर्वमें हुए अरिष्टोंका कारण है। किन्तु उनका यह कहना युक्तियुक्त नहीं है। इस कथनकी पुष्टि परीक्षा मुखके इन सूत्रों और उनकी प्रमेयरत्नमाला टीकासे होती है । यथा--
भाव्यतीतयोमरणजाग्रबोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुत्वम् ।३,५९। तद्वयापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वम् ।३६०।
हि शब्दो यस्मादर्थे । यस्मात्तस्य कारणस्य भावे कार्यस्य भावित्वं तद्भावभायित्वम् । तच्च तद् व्यापाराश्रितम् । तस्मान्न प्रकृतयोः कार्यकारणभाव इत्यर्थः । अयमर्थ:--अन्वय-व्यतिरेकसमधिगम्यो हि सर्वत्र कार्यकारणभाव । तौ च कार्य प्रति कारणव्यापरसव्यपेक्षावेवोत्पद्यते कुलालस्येव कलशं प्रति । न चातिव्यवहितेषु तव्यापाराश्रितत्वम् ।
भावी मरणकी अतीत अरिष्टके प्रति तथा अतीत जागृत् बोधको उद्बोधके प्रति कारणता नही है ।३,५९ ।
क्योंकि कारणके होनेपर कार्यका होना कारणके व्यापारके आश्रित है ॥३,६०॥
सूत्रमें 'हि' शब्द 'क्योंकि के अर्थमें आया है। क्योंकि कारणके होनेपर कार्यका होना कारणके व्यापारके आश्रित हैं, इसलिये भावी मरण और अतीत अरिष्टके मध्य तथा अतीत जागृत् बोध और उद्बोधके मध्य कारण-कार्यभाव नहीं है। तात्पर्य यह है कि सर्वत्र कार्यकारणभ अन्वय-व्यतिरेकसे जाना जाता है। और वे दोनों कार्यके प्रति कारणके व्यापारको अपेक्षासे ही घटित होते हैं। जैसे कि