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8 गीता दर्शन भाग-58
लेकिन बेटा बड़ा ज्ञानी था, शास्त्रों का बड़ा ज्ञाता था। दूर-दूर तक जब तक तू उस पूरे निश्चय को नहीं कर पाएगा, तब तक मुझे नहीं बड़ी ख्याति थी। नव्य न्याय का, न्याय का, तर्क का बड़ा पंडित समझ पाएगा। था। साठ वर्ष का हो गया, तो अस्सी वर्ष के पिता ने कहा कि अब पूर्ण निश्चय हमने कभी भी नहीं किया है। छोटे-मोटे निश्चय बहुत हो गया, अब तू भी बूढ़ा हो गया, अब मंदिर जाना जरूरी है! | भी हमने पूर्ण नहीं किए हैं। अगर आप पांच मिनट के लिए भी तय ___ उस साठ वर्ष के बूढ़े बेटे ने कहा, मंदिर तो मैं कई बार सोचा करें कि मैं आंख को नहीं झपडूंगा, तो भी आपको परमात्मा की कि जाऊं, लेकिन पूरा मन कभी मैंने पाया नहीं कि मंदिर जाऊं। झलक मिल जाए। लेकिन पांच मिनट में आंख पच्चीस बार झपक और अगर अधूरे मन से गया, तो मंदिर में जा ही कैसे पाऊंगा? जाएगी। अगर आप तय करें कि मैं पांच मिनट बिना हिले खड़ा आधा बाहर रह जाऊंगा, आधा भीतर जाऊंगा. तो जाना हो ही नहीं | रहूंगा, तो भी परमात्मा की झलक मिल जाए। लेकिन पांच मिनट पाएगा। और फिर मैं आपको भी रोज मंदिर जाते देखता हूं वर्षों से; | में पच्चीस बार आप हिल जाएंगे। जिस मन से आप तय कर रहे चालीस वर्ष का तो कम से कम मुझे स्मरण है; लेकिन आपकी | | हैं, उस मन का स्वभाव कंपन है। तो पूर्ण निश्चय तभी होता है, जिंदगी में मैंने कोई फर्क नहीं देखा। तो मैं मानता हूं कि आप मंदिर | | जब कोई व्यक्ति मन के पार उठ पाए।
अभी पहुंच ही नहीं पाए हैं। आप जाते हैं, आते हैं, लेकिन पूरा | | समस्त ध्यान की प्रक्रियाएं मन के पार उठने के उपाय हैं। मन मंदिर और पूरा मन कहीं मिल नहीं पाते। तो आपको देखकर भी | | का अर्थ है, विचलित चेतना। और ध्यान का अर्थ है, अविचलित मेरी हिम्मत टूट जाती है। जाऊंगा एक दिन जरूर, लेकिन उसी | | चेतना। ध्यान का अर्थ है, मन की मृत्यु। दिन, जिस दिन पूरा मन मेरे पास हो।
| इसलिए झेन फकीरों ने ध्यान के लिए नाम दिया है. नो माइंड। और दस वर्ष बीत गए। बाप मरने के करीब पहुंच गया। अभी कबीर ने भी ध्यान को अ-मनी अवस्था कहा है; ए स्टेट आफनो तक वह प्रतीक्षा कर रहा है कि किसी दिन उसका बेटा जाएगा। माइंड। ध्यान का अर्थ है, जहां मन न रह जाए, जहां मन न बचे, सत्तरवीं उसकी वर्षगांठ आ गई। और बेटा उस दिन सुबह बाप के | | जहां कोई विकल्प न हो, जहां कोई द्वंद्व न हो। पैर छूकर बोला कि मैं मंदिर जा रहा हूं।
अगर एक क्षण को भी मैं इस आंतरिक समता को पा जाऊं, जहां बेटा मंदिर गया। घड़ी, दो घड़ी, तीन घड़ी बीतीं। बाप चिंतित | मन में कोई द्वंद्व न हो, जहां कोई विपरीत भाव न हो, जहां कोई . हुआ; बेटा मंदिर से अब तक लौटा नहीं है! फिर आदमी भेजा। कलह न हो, कोई काफ्लिक्ट न हो-एक क्षण को भी अगर यह मंदिर के पास तो बड़ी भीड़ लग गई है। फिर बूढ़ा बाप भी पहुंचा। समरसता भीतर आ जाए, तो मैं निश्चय को उपलब्ध हुआ। पुजारियों ने कहा कि इस बेटे ने क्या किया, पता नहीं! इसने आकर उसी क्षण मुझे परमात्मा उपलब्ध हो जाए; उसी क्षण उसकी मुझे सिर्फ एक बार राम का नाम लिया और गिर पड़ा।
झलक मिल जाए; धागे की झलक मिल जाए, मनकों के भीतर जो एक पत्र वह अपने घर लिखकर रख आया था। जिसमें उसने | छिपा है। लिखा था कि एक बार राम का नाम लूंगा, पूरे मन से। अगर कुछ । सूफी फकीर एक ध्यान का अभ्यास करते और करवाते हैं। हो जाए, तो ठीक; अगर कुछ न हो, तो फिर दुबारा नाम न लूंगा। | पश्चिम में जार्ज गुरजिएफ ने भी उस ध्यान के प्रयोग को बहुत क्योंकि फिर दुबारा लेने का क्या प्रयोजन है?
प्रचलित किया इस सदी में। सूफी फकीर उस प्रयोग को कहते हैं, एक ही बार राम का नाम पूरे मन से लिया गया; वह शरीर से | दि एक्सरसाइज आफ हाल्ट। और गुरजिएफ ने उसे कहा है, स्टाप मुक्त हो गया। लेकिन पूरे मन से तो हम कुछ ले नहीं पाते। पूरे मन एक्सरसाइज-रुक जाने का प्रयोग। का मतलब ही होता है कि मन समाप्त हुआ। मन का कोई अर्थ ही | गुरजिएफ अपने साधकों को कहता था कि जब मैं कहूं स्टाप, नहीं होता, जब मन पूरा हो जाए।
रुक जाओ, तो तुम जो भी कर रहे होओ, वैसे ही रुक जाना। अगर तो कृष्ण पहला सूत्र का हिस्सा कहते हैं, निश्चय करने की | तुम्हारा बायां पैर चलने के लिए ऊपर उठा हो, तो वह वहीं ठहर शक्ति मैं हूं।
जाए। अगर तुम्हारा होंठ खुला हो बोलने के लिए, तो वहीं रुक तो जिस दिन भी अर्जुन, तू पूर्ण निश्चय कर पाएगा, उस दिन तू जाए। अगर तुम्हारी आंख खुली हो, तो ठहर जाए। तुम फिर कुछ मुझे समझ लेगा कि मैं कौन हूं, मैं किसकी बात कर रहा हूं। लेकिन भी बदलाहट मत करना; वैसे ही रुक जाना।