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8 ईश्वर अर्थात ऐश्वर्य
से चमड़ी भला स्पर्श करती हो, लेकिन चमड़ी के पार भी कोई चीज | समझने लगता है। धीरे-धीरे नदी के भाव समझने लगता है, मूड छुई जा रही है, इसका पता नहीं चलता।
समझने लगता है। नदी कब नाराज है, नदी कब खुश है, कब नदी अभी योरोप और अमेरिका में बड़े व्यापक पैमाने पर प्रयोग | नाचती है और कब नदी उदास होकर बैठ जाती है! कब दुखी होती चलते हैं सेंसिटिविटी के, संवेदना के। लोग गिरोहों में इकट्ठे होते है, कब संतप्त होती है, कब प्रफुल्लित होती है, वह उसके सारे हैं, एक-दूसरे के शरीर को छूने और जानने के लिए कि छूने का स्वाद, उसके सारे अनुभव, नदी की अंतर्व्यथा और नदी का अनुभव क्या है। उसका प्रशिक्षण चलता है। आपको मैं थोड़ा-सा अंतर्जीवन, नदी की आत्मकथा में डूबने लगता है। कोई उदाहरण दूं, तो खयाल में आ जाए।
धीरे-धीरे नदी उसके लिए बडी शिक्षक हो जाती है। वह इतना आप गए हैं जुहू के तट पर, रेत में बैठे हुए हैं। आंख बंद कर संवेदनशील हो जाता है कि वह पहले से कह सकता है कि आज लें, रेत को हाथ से छुएं, कांशसली। रेत तो बहुत बार छुई है, बहुत सांझ नदी उदास हो जाएगी। वह पहले से कह सकता है कि आज बार उस पर चले हैं। लेकिन मैं आपसे कहता हूं, रेत की आपको रात नदी नाचेगी। वह पहले से कह सकता है कि आज नदी कुछ कोई संवेदना नहीं है। आंख बंद कर लें, शांत हो जाएं, विचार शांत गुनगुना रही है, आज उसके प्राणों में कोई गीत है। वर्षों-वर्षों नदी के हो जाने दें, फिर रेत को हाथ से छुएं। उसका टेक्सचर, उसको किनारे रहते-रहते, नदी और उसके बीच जीवंत संबंध हो जाते हैं। अनुभव करें-क्या है-हाथ से छूकर। उलटे हाथ से छुएं; तब नदी ही परमात्मा हो जाएगी। इतनी संवेदना अगर आ जाए, उसकी ठंडक, उसकी गर्मी, एक-एक दाने का अलग-अलग | तो अब किसी और परमात्मा को खोजने जाना न पड़ेगा। भाव। लेट जाएं, सिर रेत में रख लें। आंखें रेत में गपा दें, बंद जिन ऋषियों को गंगा में परमात्मा दिखा, वे कोई आप जैसे गंगा आंखें। अनुभव करें आंखों की पलकों पर-रेत की प्रतीति, रेत के तीर्थयात्री नहीं थे, कि गए, और दो पैसे वहां फेंके, और पंडे से का फैलाव, रेत का अस्तित्व। मुट्ठी में बांधे; अनुभव करें। पूजा करवाई, और भाग आए अपने पाप गंगा को देकर! जिन्होंने
एक घंटेभर रेत के साथ संवेदना को विकसित करें। और तब | अपने पुण्य गंगा को नहीं दिए, वे गंगा को कभी नहीं जान पाएंगे। आप पहली दफा अनुभव करेंगे कि रेत में भी बड़े आयाम हैं। पाप भी देकर कहीं कोई जान पा सकता है? उसका भी अपना होना है। रेत के भी बड़े अनुभव हैं, रेत की भी इसलिए हमारे लिए गंगा एक नदी है। हम कितना ही कहें कि बड़ी स्मृतियां हैं, रेत का भी बड़ा लंबा इतिहास है। रेत भी सिर्फ रेत पवित्र है, हम भीतर जानते हैं कि बस नदी है। हम कितना ही कहें, नहीं है। वह भी अस्तित्व की एक दिशा है। और तब बहुत कुछ पूज्य है, लेकिन सब औपचारिक है। प्रतीति होगी। बहुत कुछ प्रतीति होगी।
लेकिन जिन्होंने वर्षों-वर्षों गंगा के तट पर रहकर उसके जीवन हरमन हेस ने किताब लिखी है, सिद्धार्थ। उसमें सिद्धार्थ एक | की धार से अपनी जीवन की धार मिला दी होगी, उनको पता चला पात्र है, वह नदी के किनारे वर्षों रहता है, नदी को अनुभव करता | | होगा। तब किसी भी गंगा के किनारे पता चल जाएगा। तब किसी है। कभी नदी जोर में होती है, तूफान होता है, आंधी होती है, तब । खास गंगा के किनारे ही जाने की जरूरत नहीं है, तब कोई भी नदी नदी का एक रूप प्रकट होता है। कभी नदी शांत होती है, मौन होती गंगा हो जाएगी और पवित्र हो जाएगी। है, लीन होती है अपने में, लहर भी नहीं हिलती है, तब नदी का | संवेदना-रेत में भी, वृक्ष के पत्ते में भी, फूल में भी, व्यक्ति एक और ही रूप होता है। कभी नदी वर्षा की नदी होती है, विक्षिप्त | | के हाथों में भी, लोगों की आंखों में भी-जीवन को एक संवेदना
और पागल, सागर की तरफ दौड़ती हुई, उन्मत्त। तब नदी में एक बनाएं। सब तरफ से जितना ज्यादा जीवन को स्पर्श कर सकें, उतना उन्माद होता है, एक मैडनेस होती है; उसका भी अपना आयाम है, स्पर्श करें। इस स्पर्श से आपके भीतर एक केंद्र का जन्म होगा। अपना अस्तित्व है। और कभी धूप आती है, गर्मी के दिन आते हैं, वही केंद्र परमात्मा की योगशक्ति को जान पाता है। उसी केंद्र को और नदी सूख जाती है, क्षीण हो जाती है; दीन-दुर्बल हो जाती है, पता चलता है कि जब मैं बहता हूं संवेदना में, और जब मेरे द्वार पतली, एक चांदी की चमकती धार ही रह जाती है। तब उस नदी | खुलते हैं संवेदना के लिए, जब मैं एक नदी के लिए अपने हृदय की दुर्बलता में, उस नदी के मिट जाने में कुछ और है। | के द्वार खोल देता हूं, जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी के लिए खोल धीरे-धीरे सिद्धार्थ उस नदी के किनारे रहते-रहते नदी की वाणी | दे या कोई प्रेयसी अपने प्रेमी के लिए खोल दे, तब एक नदी से भी