Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 467
________________ आंतरिक सौंदर्य अगर हम तीन हजार साल के ज्ञात इतिहास को देखें, तो सब फ्रायड का कहना है कि दो व्यक्तियों में जब भी प्रेम होता है, सौ तरह के लोग सुंदर समझे गए हैं। सब तरह के लोग। अलग-अलग में निन्यानबे मौकों पर एकतरफा होता है, वन वे ट्रैफिक होता है। तरह से लोगों ने संदर समझा है। मान्यता की बात है। प्रचलन की एक स्त्री एक परुष को चाहती है, क्योंकि वह परुष उसे संदर बात है। फैशन की बात है। सौंदर्य बाहर का तो दूसरों की नजर की | मालूम पड़ता है। उस पुरुष की अपनी धारणा है सौंदर्य की, वह बात है। भीतर का सौंदर्य ही अपनी बात है। | किसी और स्त्री को चाहता है। वह उसे सुंदर मालूम पड़ती है। वह लोगों की मान्यता का जो सौंदर्य है, उसका कोई मूल्य नहीं है। स्त्री किसी और पुरुष को चाहती है, उसे कोई और सुंदर मालूम मगर हम लोगों की मान्यता से ही जीते हैं। पब्लिक ओपीनियन! | पड़ता है। लोग क्या कहते हैं! जो लोगों की मान्यता से जीता है, वह दो व्यक्तियों की धारणाओं का मेल बहुत मुश्किल है, क्योंकि दो सांसारिक आदमी है और वह सांसारिक ही रहेगा। व्यक्ति इतने अलग-अलग हैं कि धारणाओं का मेल होता नहीं। लोगों की मान्यता से मुक्त हो जाएं। अपनी तरफ अपनी नजर इसलिए जब प्रेमी मिल जाते हैं, तो भी तकलीफ पाते हैं; नहीं मिलते, से देखें। अपने को ही खोजें कि मैं क्या हूं? सोचें कि आप अकेले तो भी तकलीफ पाते हैं। नहीं मिलते हैं तो सोचते हैं, मिल जाते तो हैं जमीन पर। क्या हैं? सुंदर हैं, कुरूप हैं? अच्छे हैं, बुरे हैं? झूठे पता नहीं, स्वर्ग मिल जाता। और मिल जाते हैं, तो लगता है कि यह हैं, सच्चे हैं? सोचें। और इस तरह जीएं कि आपको अपनी कोई | तो नर्क अपने हाथ से बुला लिया। दो व्यक्ति मिल नहीं पाते। बुराई, कोई कुरूपता ढांकनी न पड़े, बल्कि आपके भीतर का सौंदर्य | इसलिए जिस व्यक्ति को सच में ही प्रेम का आविर्भाव करना आविर्भूत हो और आपकी सारी बुराई को, सारी कुरूपता को बहा | | है, उसे समझ लेना चाहिए कि दूसरा करेगा या नहीं करेगा, इसकी ले जाए। | फिक्र छोड़ दे। प्रेम से भर जाए। और जितना प्रेम कर सके, करता सभी सुंदर को पाना चाहते हैं। जिन बहिन ने पूछा है, ठीक पूछा | | रहे। प्रेम को मांगेन। है। कुरूप स्त्री भी सुंदर को पाना चाहती है। लेकिन उसे पता होना | | इस जगत में प्रेम से उसी को आनंद मिलता है, जो करता है और चाहिए कि जिस सुंदर को वह पाना चाहती है, वह भी सुंदर को ही | मांगता नहीं। जो मांगता है, वह कर नहीं पाता, और आनंद तो उसे पाना चाह रहा होगा। इसलिए मेल कहां होगा? | मिलता ही नहीं है। अब हम सूत्र को लें। इस प्रकार अर्जुन के वचन को सुनकर कृष्ण बोले, हे अर्जुन, एक मित्र ने दो-तीन दिन से निरंतर पूछा है, जवाब | मेरा यह चतुर्भुज रूप देखने को अति दुर्लभ है कि जिसको तुमने मैंने नहीं दिया, क्योंकि मैंने सोचा कि इससे गीता का | देखा है। देवता भी इस रूप के दर्शन की इच्छा रखने वाले हैं। कोई संबंध नहीं है। पूछा है कि एक स्त्री के प्रेम में चतुर्भुज रूप कृष्ण का सहज रूप नहीं है। वे कोई चार हाथ हैं वे। और वर्षों हो गए, समझा-समझाकर परेशान वाले नहीं हैं। वे दो ही हाथ वाले हैं, जैसे सभी आदमी हैं। लेकिन हो गए, अब तक वे यह नहीं समझा पाए उस स्त्री | अर्जुन ने चाहा था कि वे चतुर्भुज रूप वाले प्रकट हों, चार हाथ को कि प्रेम क्या है। और वह स्त्री उनके प्रेम में नहीं वाले प्रकट हों। है। तो. कैसे उसको समझाएं? यह चार हाथ एक प्रतीक है। हजार हाथ वाले रूप की भी हमने परमात्मा की कल्पना की है, वह भी एक प्रतीक है। मां बच्चे को | उठाती है दोनों हाथों में। ये दो हाथों से उठाने तक तो मनुष्य का प्रेम ल ड़ा मुश्किल है, बड़ा कठिन है। क्योंकि आप जिसको | | है। लेकिन जहां परमात्मा चार हाथ से किसी को उठाता है, वहां प चाहते हैं, उसके भी अपने मापदंड हैं, उसकी भी | | मनुष्य के ऊपर के प्रेम की खबर लाने के लिए दो हाथ हमने और अपनी चाह के हिसाब हैं, उसकी अपनी वासनाएं हैं। जोड़े हैं। जैसे परमात्मा दोहरी माता है हमारी, दोहरे अर्थों में। वह और यह बड़े मजे की बात है कि जब भी दो व्यक्तियों में एक दूसरे | | इस जगत में तो हमको सम्हाले ही हुए है, उस जगत में भी को चाहता है, तो दूसरा उतना ही नहीं चाह सकता। सम्हालेगा। ऐसे हमने चार हाथ की कल्पना की है। | 437

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