Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 470
________________ गीता दर्शन भाग-500 हे अर्जुन, जो पुरुष केवल मेरे लिए ही सब कुछ मेरा समझता | उसका नहीं है; जिसका अहंभाव पूरा समर्पित है और जो—यह हुआ संपूर्ण कर्तव्य-कर्मों को करने वाला और मेरा परायण है | बड़ा कठिन मालूम पड़ेगा सूत्र-और जो आसक्तिरहित है। पत्नी अर्थात मेरे को परम आश्रय और परम गति मानकर मेरी प्राप्ति के | में, बच्चे में, धन में जिसकी कोई आसक्ति नहीं है। जिसने अपना लिए तत्पर है तथा मेरा भक्त है और आसक्तिरहित है; स्त्री, पुत्र, सारा प्रेम मेरी तरफ मोड़ दिया है। धनादि संपूर्ण सांसारिक पदार्थों में स्नेहरहित है और संपूर्ण | इसके दो मतलब हो सकते हैं। एक खतरनाक मतलब है, जो भूत-प्राणियों में वैर-भाव से शून्य है, ऐसा वह अनन्य भक्ति वाला | लोग आमतौर से ले लेते हैं। वह मतलब यह है कि पत्नी को प्रेम मत पुरुष मेरे को ही प्राप्त होता है। करो, बच्चे को प्रेम मत करो। सब तरफ से प्रेम को सिकोड़ लो और इस अंत में दो-तीन बातें समझ लेने जैसी हैं और बहुत उपयोग | परमात्मा के चरणों में डाल दो। यह आमतौर से लिया गया मतलब की हैं। जो साधक हैं, उनके लिए बहुत काम की हैं। है, जो खतरनाक है। क्योंकि इसका परिणाम, इसका परिणाम एक पहली बात, कृष्ण कहते हैं, जो सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दे। प्रेम | | ऐसा आदमी होता है, जो सब तरफ से सूख जाता है, रसहीन हो जाता छोड़ता है, घृणा छोड़ने से डरती है। क्योंकि घृणा में अपने को | | है। और यह पत्नी और बच्चे और परिवार और मित्रों से जो प्रेम को सुरक्षित खुद ही करना होता है। प्रेम छोड़ता है। प्रेम का मतलब ही | | खींचता है, इस छीना-झपटी में ही प्रेम मर जाता है। है कि हम दूसरे पर सब छोड़ दें। यह करीब-करीब ऐसा है, जैसे एक लगाए हुए पौधे को कोई मैंने सुना है, एक युवक विवाह करके लौट रहा था। पानी के | उखाड़कर कहीं और लगाने चला। और उखाड़कर प्रेम को पत्नी की जहाज से यात्रा कर रहा था। जोर का तूफान आया, उसकी प्रेयसी | तरफ से, परमात्मा में लगाने में ही प्रेम की जड़ें सूख जाती हैं। वह कंपने लगी और घबड़ाने लगी, लेकिन वह युवक शांत था। उसकी | | परमात्मा तक कभी पहुंच नहीं पाता। पत्नी से तो उखड़ जाता है, प्रेयसी ने कहा कि तुम इतने शांत क्यों हो! यहां तो मौत दिखाई और परमात्मा तक कभी पहुंच नहीं पाता। लेकिन यह आम भाव पड़ती है। नाव डूबेगी लगता है। मल्लाह भी घबड़ा गए हैं। उस | है, जो लोगों ने लिया है। युवक ने कहा, घबड़ाओ मत। ऊपर जो है, मैंने सब उस पर छोड़ | मेरी ऐसी दृष्टि नहीं है। मेरा मानना यह है कि पत्नी के प्रति भी दिया है। उसकी स्त्री ने कहा, कुछ भी हो, छोड़ा हो या न छोड़ा हो, तुम्हारा जो प्रेम है, वह भी कृष्ण का ही प्रेम है, तुम्हारा प्रेम नहीं है। यहां मौत खड़ी है! | तुम अपने को हटा लो; प्रेम को मत हटाओ। क्योंकि जब कर्मों में उस युवक ने अपनी म्यान से तलवार खींच ली। नंगी चमकती तुम कहते हो कि सब कर्म उसके हैं, तो प्रेम भी उसका है। पत्नी हुई तलवार थी, उसने अपनी प्रेयसी, पत्नी के कंधे पर तलवार के प्रति तुम्हारा जो प्रेम है, वह भी कृष्ण का है, तुम्हारा नहीं है। रखी। पत्नी हंसने लगी। उसने कहा, यह तुम क्या खेल कर रहे हो! और पत्नी में तुम्हें जो भी दिखाई पड़े, पत्नी को देखना बंद कर देना उस युवक ने पूछा कि नंगी चमकती हुई तलवार; जरा-सा धक्का | | और कृष्ण को देखना शुरू करना। और तेरी गर्दन अलग हो जाए; तुझे मेरे हाथ में तलवार देखकर ___ बच्चे से हटाना मत प्रेम को। उसमें सूख जाएगा। पौधा बहुत भय नहीं लगता? तो उसकी पत्नी ने कहा, तुम्हारे हाथ में तलवार | कमजोर है। वैसे ही तो प्रेम नहीं है। बच्चे से क्या खाक प्रेम है! या देखकर भय कैसा? तुमसे मेरा प्रेम है। | पत्नी से क्या प्रेम है! ऐसे ही ऊपर-ऊपर तो लगाए हुए हैं। मौसमी उस युवक ने तलवार भीतर रख ली और उसने कहा कि उससे | | पौधा है। उसको उखाड़कर परमात्मा में लगाने गए, उखाड़ की मेरा प्रेम है। उसके हाथ में तूफान देखकर मुझे कोई भय नहीं | | छीना-झपटी में ही टूट जाता है। और जड़ें उसकी इतनी कमजोर हैं लगता। उसकी मर्जी। अगर डुबाने में ही हमें कुछ लाभ होता होगा, | कि वह परमात्मा तक पहुंचती नहीं। तो ही वह डुबाएगा। और अगर बचने में कोई हानि होती होगी, तो | बेहतर तो यह है कि पत्नी में ही और थोड़े गहरे जड़ों को पहुंचा वह हमें नहीं बचाएगा। उस पर छोड़ा हुआ है। | देना। इतने गहरे पहुंचा देना कि पत्नी ऊपर रह जाए और भीतर प्रेम छोड़ता है पूरा। परमात्मा हो जाए। और बच्चे में प्रेम को इतना उंडेल देना कि बच्चा तो कृष्ण कहते हैं, जिसने पूरा मेरे ऊपर छोड़ा है। और जो दिखना बंद हो जाए और बाल-गोपाल दिखाई पड़ने लगे! तो पत्नी प्रत्येक काम को ऐसे करता है, जैसे वह मेरा, कृष्ण का काम है, नहीं रही, बच्चा नहीं रहा। सारा प्रेम परमात्मा को समर्पित हो गया। 440

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