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ॐ गीता दर्शन भाग-500
परमात्मा के लिए सिर झुकाना बहुत आसान है। पास-पड़ोसी में | और प्रेमिका की तरह आत्मा के तल पर एक न हो जाएं, तब तक छिपे परमात्मा को सिर झुकाना बहुत मुश्किल है। पत्नी में, पति में, | | अध्यात्म का संचरण, अध्यात्म का उपदेश, अध्यात्म का दान, बेटे में, भाई में छिपे परमात्मा को सिर झुकाना बहुत मुश्किल है। असंभव है। इसलिए अध्यात्म गोपनीय है।
स्वभावतः, जो जितने निकट है, उसके साथ हमारे अहंकार का शरीर भी मिलते हैं तो गुप्तता चाहिए, तो जब आत्माएं मिलती संघर्ष, प्रतिद्वंद्विता उतनी ही बड़ी हो जाती है। इसलिए यहूदी कहते हैं तो और भी गुप्तता चाहिए। इसलिए अध्यात्म छिपा-छिपाकर हैं कि कभी भी कोई पैगंबर अपने गांव में नहीं पूजा जाता। न पूजे दिया गया है, चुपचाप दिया गया है, मौन में दिया गया है। कारण, जाने का कारण है। क्योंकि इतना निकट है गांव के लिए पैगंबर, इतना मौन, इतनी चुप्पी, इतना एकांत न हो, तो वह जो भीतर, दो कि यह मानना मश्किल है कि तम हमसे ऊपर हो। असंभव है। का मिलन. संवाद है. वह असंभव है। इसलिए गांव में तो पैगंबर को पत्थर ही पड़ेंगे। पूजा मिलनी बहुत ___ अर्जुन कहता है कि इतनी गोपनीय बात को आपने मुझ पर प्रकट मुश्किल है।
किया, यह सिवाय अनुग्रह के और क्या हो सकता है! अर्जुन कृष्ण को कह सका कि तुम्हारा अनुग्रह है, मेरी कोई पात्रता इस प्रकटीकरण में, इस अभिव्यक्ति में, इस गोपनीय मिलन में नहीं है। यह उसकी पात्रता का सबूत है। यह धार्मिक जगत में प्रवेश और भी एक बात विचारणीय है कि यह घटना घटती है युद्ध के करने वाले व्यक्ति की पहली योग्यता है, पहला लक्षण है। मैदान पर। चारों तरफ बड़ा समूह है। और साधारण समूह नहीं,
मुझ पर अनुग्रह करने के लिए परम गोपनीय अध्यात्म-विषयक युद्ध को रत, युद्ध के लिए तत्पर। इस युद्ध के लिए तत्पर समूह में वचन अर्थात उपदेश आपके द्वारा जो कहा गया, उससे मेरा अज्ञान | भी यह गोपनीयता घट जाती है। यह मिलन, यह कृष्ण का संवाद नष्ट हो गया है।
| अर्जुन को सुनाई पड़ जाता है, यह कृष्ण अनुग्रह कर पाते हैं। दूसरी बात, परम गोपनीय अध्यात्म।
तो एक और बात खयाल ले लेनी चाहिए। और वह यह कि दो अध्यात्म प्रेम से भी ज्यादा गोपनीय है। इसे थोड़ा हम समझ लें। शरीरों को मिलना हो, तो भौतिक अर्थों में एकांत चाहिए। दो आप जिसे प्रेम करते हैं, चाहते हैं, उसके साथ एकांत मिले। दूसरे आत्माओं को मिलना हो, तो भीड़ में भी मिल सकती हैं। भौतिक की मौजूदगी खटकती है। दो प्रेमी किसी को भी मौजूद नहीं देखना अर्थों में एकांत का फिर कोई अर्थ नहीं है। इस भीड़ में भी दो चाहते, अकेले हो जाना चाहते हैं। क्यों? इतना अकेले की क्या आत्माओं का मिलन हो सकता है। क्योंकि भीड़ तो शरीर के तल तलाश है? अकेले में इतना क्या रस है? दूसरे की मौजूदगी क्या पर है। बाधा देती है?
यह बहुत विचार की बात रही है। जिन लोगों ने भी गीता पर गहन पहली बात, जिसके साथ हम गहरे प्रेम में हैं, उसमें हम लीन अध्ययन किया है, उन्हें यह मन में विचार उठता ही रहा है, यह प्रश्न होना चाहते हैं और उसे अपने में लीन कर लेना चाहते हैं। जिसके जगता ही रहा है, कि युद्ध के मैदान पर, भीड़ में, युद्ध के लिए तत्पर साथ गहरे प्रेम में हैं, उसके साथ हम द्वैत को तोड़ देना चाहते हैं, । लोगों के बीच, कृष्ण को भी कहां की जगह मिली गीता का संदेश अद्वैत हो जाना चाहते हैं। दो न रहें, एक ही रह जाए। लेकिन वह कहने के लिए! पर यह बहुत सुविचारित मालूम पड़ता है। जो तीसरा मौजूद है, उसके साथ तो हमारा कोई प्रेम नहीं है। उसकी अध्यात्म, शरीर की भीड़ के बीच भी एकांत पा सकता है। मौजूदगी अद्वैत को घटित न होने देगी।
अध्यात्म, बाजार के बीच भी अकेला हो सकता है। और इसलिए प्रेमी एकांत चाहते हैं, प्राइवेसी चाहते हैं, अकेलापन आध्यात्मिक मिलन युद्ध के क्षण में भी घट सकता है। क्योंकि चाहते हैं। वह तीसरे की जो मौजूदगी है, बाधा बन जाएगी और द्वैत | युद्ध, बाजार, शरीरों की भीड़, सब बाहर हैं। अगर भीतर तत्परता बना रहेगा। वह मौजूद न हो, तो दो व्यक्ति लीन हो सकते हैं एक | हो, पात्रता हो, और अगर भीतर ग्रहण करने की क्षमता हो, लीन में। इसलिए प्रेम गोपनीय है, गुप्त है, सार्वजनिक नहीं है। | होने की, विनम्र होने की, डूबने की, चरणों में गिर जाने की भावना
अध्यात्म और भी गोपनीय है। क्योंकि प्रेम में तो शायद दो शरीर हो, तो अध्यात्म कहीं भी घटित हो सकता है—यद्ध में भी। ही मिलते हैं, अध्यात्म में गुरु और शिष्य की आत्मा भी मिल जाती इस बात को जिस अनूठे ढंग से गीता ने जगत को दिया है, कोई है। और जब तक यह मिलन घटित न हो कि गुरु और शिष्य, प्रेमी दूसरा शास्त्र नहीं दे सका। और इसलिए गीता अगर इतनी रुचिकर
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