________________
गीता दर्शन भाग-58
रहे हैं उनको बिठाइए वहीं। और कल से मैं एक भी व्यक्ति को बीच मृत्यु, दोनों को एक साथ काली में इकट्ठा किया। एक तरफ वह से नहीं उठने दूंगा। आप पहले से बाहर रहें। कोई कारण नहीं है बीच | | जन्मदात्री है, और दूसरी तरफ मृत्यु उसके हाथ से घटित हो रही है। में बैठने का।)
और हड्डियों की, खोपड़ियों की माला उसने गले में डाल रखी है! __ अर्जुन ने देखा, विकराल रूप! जहां परमात्मा मृत्यु का मुख बन | ___ कभी आपने अपनी मां को इस भाव से देखा? बहुत घबड़ाहट गया है। वह कह रहा है कि हे महाबाहो! यह मैं देख रहा हूं, इससे | | होगी। और अगर आप अपनी मां को इस भाव से नहीं देख सकते, सारे लोक व्याकुल हो रहे हैं, मैं भी व्याकुल हो रहा हूं। मेरा हृदय तो काली को आप मां कैसे कह सकते हैं! असंभव है। धड़कता है और घबड़ाहट रोएं-रोएं में समा गई है। क्या यह भी | लेकिन जिन्होंने, जिन तांत्रिकों ने यह द्वंद्व को जोड़ने का खयाल आप हैं?
किया, बड़े अदभुत लोग थे। इसमें एक प्रतीक है। इसमें जन्म और यह व्याकुलता स्वाभाविक है। क्योंकि हमने परमात्मा का एक मृत्यु एक साथ खड़े हैं। इसमें प्रेम और मृत्यु एक साथ खड़े हैं। ही रूप देखा। और हमने परमात्मा के एक ही रूप की पूजा की। इसमें मां का हृदय और मृत्यु के हाथ एक साथ खड़े हैं। मगर
और हमने परमात्मा के एक ही रूप को सराहा। और हमने यह माना धीरे-धीरे यह रूप खोता चला गया। यह रूप आज अगर कभी कि वह एक इसी रूप से एक है; दूसरा रूप परमात्मा का नहीं है। आपको दिखाई भी पड़ता है, तो सिर्फ परंपरागत है। इसकी धारणा तो जब हमें पूरा परमात्मा दिखाई पड़े, तो व्याकुलता बिलकुल खो गई। इसके हृदय में संबंध हमारे खो गए। . स्वाभाविक है।
हमने परमात्मा का तो सौम्य, सुंदर रूप—कृष्ण बांसुरी बजाते यह व्याकुलता परमात्मा के रूप के कारण नहीं है, हमारी बुद्धि खड़े हैं, वे लगते हैं कि परमात्मा हैं। मोर-मुकुट बांधा हुआ है, के तादात्म्य के कारण है। हमने एक हिस्से के साथ तादात्म्य कर उनके होंठों पर मुस्कान है। वे लगते हैं कि परमात्मा हैं। उनसे हमें लिया है। हमने देखा कि परमात्मा होगा सौंदर्य। हमने परमात्मा की आश्वासन मिलता है, राहत मिलती है, सांत्वना मिलती है। हम सारी प्रतिमाएं सुंदर बनाई हैं। कुछ हिम्मतवर तांत्रिकों ने कुरूप वैसे ही बहुत दुखी हैं। काली को देखकर और उपद्रव क्यों खड़ा प्रतिमाएं भी बनाई हैं, लेकिन वे धीरे-धीरे खोती जा रही हैं। हमारे करना है! मन को उनकी अपील नहीं है।
कृष्ण को देखकर सांत्वना, कंसोलेशन मिलता है कि ठीक है। अगर आप विकराल काली को देखते हैं, हाथ में खंजर लिए, | इस जीवन में होगा दुख। इस जीवन में होगी मृत्यु। आज नहीं कल, कटा हुआ सिर लिए, गले में मुंडों की माला डाले हुए, पैरों के नीचे | वह मुकाम आ जाएगा, जहां बांसुरी ही बजती रहती है। जहां सुख किसी की छाती पर सवार, लाल जीभ, खून टपकता हुआ, तो भला | ही सुख है। जहां शांति ही शांति है, जहां संगीत ही संगीत है। जहां भय की वजह आप नमस्कार करते हों, लेकिन मन में यह भाव नहीं | फिर कुछ बुरा नहीं है। उसकी आशा बंधती है, उसका भरोसा उठता कि यह परमात्मा का रूप है। भला मान्यता के कारण आप बंधता है। मन को राहत मिलती है। तो जो हमारे पास नहीं है, जो सोचते हों कि ठीक; लेकिन भीतर यह भाव नहीं उठता कि यह जिंदगी में खोया हुआ है, जिसका अभाव है, उसे हमने कृष्ण में पूरा परमात्मा का रूप है।
कर लिया। और स्त्री, ममता, मां जिसको हमने कहा! और काली को हम आपने कभी खयाल किया कि हमने कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर, मां कहते हैं। मां जो है, वह ऐसा विकराल रूप लिए खड़ी है, तो | किसी के बुढ़ापे का चित्र नहीं बनाया है। कोई बुढ़ापे की मूर्ति नहीं मन को बड़ी बेचैनी होती है कि क्या बात है! लेकिन जिन्होंने यह | बनाई है। ऐसा नहीं है कि ये लोग बूढ़े नहीं हुए। बूढ़े तो होना ही विकराल रूप खोजा था, उन्होंने एक द्वंद्व को इकट्ठा करने की | पड़ेगा। इस जमीन पर जो है, जमीन के नियम उस पर काम करेंगे। कोशिश की थी।
और ये जमीन के नियम किसी को भी छूट नहीं देते, यहां कोई छुट्टी मां से ज्यादा प्रेम से भरा हुआ हृदय पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। | नहीं है। और अगर इस जमीन के नियमों में छुट्टी हो, तो फिर जगत इसलिए मां को खड़ा किया इतने विकराल रूप में, जो कि दूसरा | बिलकुल एक बेईमान व्यवस्था हो जाए। यहां तो कृष्ण को भी बूढ़ा छोर है। मां को ऐसे खड़ा किया, जैसे वह मृत्यु हो। मां तो जन्म | होना पड़ेगा, राम को भी होना पड़ेगा, बुद्ध को भी होना पड़ेगा, है। मां को ऐसे खड़ा किया, जैसे वह मृत्यु हो। दो द्वंद्व, जन्म और | | महावीर को भी होना पड़ेगा।
13201