Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 445
________________ मांग और प्रार्थना रहा है, वही है । द्रष्टा विज्ञान की पकड़ में नहीं आएगा। और धर्म और विज्ञान का यही फासला है। अगर विज्ञान आत्मा को पकड़ ले, तो धर्म की फिर कोई भी जरूरत नहीं है। और अगर धर्म पदार्थ को पकड़ ले, तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है। हालांकि दोनों तरह के मानने वाले पागल हैं। कुछ पागल हैं, जो समझते हैं, धर्म काफी है, विज्ञान की कोई जरूरत नहीं है। वे उतने ही गलत हैं, जितने कि कुछ वैज्ञानिक समझते हैं कि विज्ञान काफी है और धर्म की कोई जरूरत नहीं है। विज्ञान पदार्थ की पकड़ है, पदार्थ की खोज है। धर्म आत्मा की खोज है, अपदार्थ की, नान - मैटर की खोज है। ये दोनों खोज अलग हैं। इन दोनों खोज के आयाम अलग हैं। इन दोनों खोज की विधियां अलग हैं। अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो प्रयोगशाला में जाओ। और अगर धर्म की खोज करनी है, तो अपने भीतर जाओ। अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो पदार्थ के साथ कुछ करो। अगर धर्म की खोज करनी है, तो अपने चैतन्य के साथ कुछ करो तो इस चैतन्य को न तो टेस्ट ट्यूब में रखा जा सकता है; न तराजू पर तौला जा सकता है; न काटा-पीटा जा सकता है सर्जन की टेबल पर कोई उपाय नहीं है। इसका तो एक ही उपाय है कि अगर आप अपने को सब तरफ से शांत करके भीतर खड़े हो जाएं जागकर, तो इसका अनुभव कर सकते हैं। यह अनुभव निजी और वैयक्तिक हैं। एक मित्र ने यह सवाल भी पूछा है कि धर्म और विज्ञान में क्या फर्क है ? यही फर्क है। विज्ञान है परंपरा, समूह की । धर्म है निजी अनुभव, व्यक्ति का । विज्ञान प्रमाण दे सकता है, धर्म प्रमाण नहीं दे सकता। धर्म केवल अनुभव दे सकता है, प्रमाण नहीं। विज्ञान कह सकता है, सौ डिग्री पर पानी गर्म होता है। हजार लोगों के सामने पानी गर्म करके बताया जा सकता है। सौ डिग्री पर पानी गर्म हो जाएगा, प्रमाण हो गया। धर्म जिन बातों की चर्चा करता है, वे किसी के सामने भी प्रकट करके नहीं बताई जा सकतीं, जब तक कि वह दूसरा आदमी अपने भीतर जाने को राजी न हो। और वह भी भीतर चला जाए, तो किसी दिन दूसरे के सामने प्रमाण नहीं दे सकेगा। धर्म के पास कोई प्रमाण नहीं है, सिर्फ अनुभव है। विज्ञान के पास प्रमाण है, अनुभव कुछ भी नहीं है। तो अगर आपको प्रमाण इकट्ठे करने हों, तर्क इकट्ठे करने हों, तो विज्ञान उचित है । और अगर आपको जीवन का अनुभव पाना हो, जीवन के रहस्य में उतरना हो, तो धर्म की जरूरत है। 415 और धर्म और विज्ञान पृथ्वी पर सदा बने रहेंगे, क्योंकि उनके आयाम अलग हैं, उनकी दिशाएं अलग हैं। जैसे आंख देखती है और कान सुनता है। अगर आंख सुनने की कोशिश करे, तो पागल हो जाएगी। और अगर कान देखने की कोशिश करे, तो पागल हो जाएगा। उनके आयाम अलग हैं, उनके डायमेंशन अलग हैं। विज्ञान और धर्म का क्षेत्र ही अलग है। वे कहीं एक-दूसरे को ओवरलैप नहीं करते, एक-दूसरे के ऊपर नहीं आते। अलग-अलग हैं। इसलिए कोई झगड़ा भी नहीं है, कोई कलह भी नहीं है। न तो विज्ञान धर्म को गलत सिद्ध कर सकता है और न सही । और न धर्म विज्ञान को गलत सिद्ध कर सकता है और न सही। उनका कोई संबंध ही नहीं है। उनके यात्रा-पथ अलग हैं, उनका कहीं मिलना नहीं होता। इसलिए दोनों की भाषा को अलग रखने की कोशिश करें, तो | आपके अपने जीवन में सुविधा बनेगी। जहां पदार्थ की बात सोचते हों, वहां विज्ञान की सुनें; और जहां चेतना की बात सोचते हों, वहां | विज्ञान की बिलकुल मत सुनें, वहां धर्म की सुनें। और इन दोनों को मिलाएं मत। इन दोनों को आपस में गड्डमड्ड मत करें। अन्यथा आपका जीवन एक कनफ्यूजन हो जाएगा। तो डाक्टर जैक्सन जो कहते हैं, वे ठीक कहते हैं। उन्होंने एक कीमती बात खोजी । लेकिन वह आत्मा का वजन नहीं है। वह ज्यादा से ज्यादा प्राणवायु का वजन हो सकता है। आत्मा का कोई वजन नहीं है। एक मित्र ने पूछा है, गीता जैसे अमृत-तुल्य परम रहस्यमय उपदेश को भगवान ने अर्जुन को ही क्यों दिया ? अर्जुन में ऐसी कौन-सी योग्यता थी कि वह इसके लिए पात्र था ? उसका ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तप था ? g छ बातें खयाल में लेने जैसी हैं, वे गीता को समझने में उपयोगी होंगी, स्वयं को समझने में भी ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478