Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 444
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-58 का सही! अंतर पड़ जाता है। आपको जीवित रखती है। अब यह जो इक्कीस ग्राम का अंतर पड़ता है, स्वभावतः जैक्सन | सब जीवन एक तरह की जलन, एक तरह की आग है। सब वैज्ञानिक है, वह सोचता है, यही आत्मा का वजन होना चाहिए। जीवन आक्सीजन का जलना है। चाहे दीया जलता हो, तो भी क्योंकि वैज्ञानिक सोच ही नहीं सकता कि बिना वजन के भी कोई आक्सीजन जलती है और चाहे आप जीते हों, तो भी आक्सीजन चीज हो सकती है। वजन पदार्थवादी मन की पकड़ है। बिना वजन जलती है। तो एक तफान आ जाए और दीया जल रहा हो. तो आप के कोई चीज कैसे हो सकती है! तूफान से बचाने के लिए एक बर्तन दीए पर ढांक दें। तो हो सकता वैज्ञानिक तो सूरज की किरणों में भी वजन खोज लिए हैं। वजन | है तूफान से दीया न बुझता, लेकिन आपके बर्तन ढांकने से बुझ है, बहुत थोड़ा है। पांच वर्गमील के घेरे में जितनी सूरज की किरणें| | जाएगा। क्योंकि बर्तन ढांकते ही उसके भीतर जितनी आक्सीजन पड़ती हैं, उनमें कोई एक छटांक वजन होता है। इसलिए एक किरण | | है, उतनी देर जल पाएगा, आक्सीजन के खत्म होते ही बुझ जाएगा। आपके ऊपर पड़ती है, तो आपको वजन नहीं मालूम पड़ता। | आदमी भी एक दीया है। आक्सीजन भीतर प्रतिपल जल रही है। क्योंकि पांच वर्गमील में जितनी किरणें पड़ें दोपहर में, उनमें एक आपका पूरा शरीर एक फैक्टरी है, जो आक्सीजन को जलाने का छटांक वजन होता है। - काम कर रहा है, जिससे आप जी रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक तो तौलकर चलता है। मेजरेबल, कुछ भी हो | | तो जैसे ही आदमी मरता है, भीतर की सारी प्राणवायु व्यर्थ हो जो तौला जा सके, तो ही उसकी समझ गहरी होती है। एक बात | | जाती है, बाहर हो जाती है। उसको जो पकड़ने वाला भीतर मौजूद अच्छी है कि जैक्सन ने पहली दफा मनुष्य के इतिहास में तौल के | | था, वह हट जाता है, वह छूट जाती है। उस प्राणवायु का वजन आधार पर भी तय किया कि जीवन और मृत्यु में थोड़ा फर्क है। इक्कीस ग्राम है। कोई चीज कम हो जाती है। स्वभावतः, वह सोचता है कि आत्मा | लेकिन विज्ञान को वक्त लगेगा अभी कि प्राणवायु का वजन इक्कीस ग्राम वजन की होनी चाहिए। नापकर वह तय करे। और अगर जैक्सन को पता चल जाए कि यह अगर आत्मा का कोई वजन है, तो वह आत्मा ही नहीं रह जाती, | प्राणवाय का नाप है. तो सिद्ध हो गया कि आत्मा नहीं है, प्राणवायु पहली बात। क्योंकि आत्मा और पदार्थ में हम इतना ही फर्क करते | ही निकल जाती है। हैं कि जो मापा जा सके, वह पदार्थ है। इससे कुछ सिद्ध नहीं होता। क्योंकि आत्मा को वैज्ञानिक कभी अंग्रेजी में शब्द है मैटर, वह मेजर से ही बना हुआ शब्द है, जो भी न पकड़ पाएंगे। और जिस दिन पकड़ लेंगे, उस दिन आप तौला जा सके, मापा जा सके। हम माया कहते हैं, माया शब्द भी | समझिए कि आत्मा नहीं है। माप से ही बना हुआ शब्द है, जो तौली जा सके, नापी जा सके, | | इसलिए विज्ञान से आशा मत रखिए कि वह कभी आत्मा को मेजरेबल, माप्य हो। . | पकड़ लेगा और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो जाएगा कि आत्मा है। पदार्थ हम कहते हैं उसे, जो मापा जा सके, तौला जा सके। जिस दिन सिद्ध हो जाएगा, उस दिन आप समझना कि महावीर, और आत्मा हम उसे कहते हैं, जो न तौली जा सके, न मापी जा बुद्ध, कृष्ण सब गलत थे। जिस दिन विज्ञान कह देगा आत्मा है, सके। अगर आत्मा भी नापी जा सकती है, तो वह भी पदार्थ का | | उस दिन समझना कि आपके सब अनुभवी नासमझ थे, भूल में पड़ एक रूप है। और अगर किसी दिन विज्ञान ने यह खोज लिया कि | गए थे। क्योंकि विज्ञान के पकड़ने का ढंग ऐसा है कि वह सिर्फ पदार्थ भी मापा नहीं जा सकता, तो हमें कहना पड़ेगा कि वह भी | | पदार्थ को ही पकड़ सकता है। वह विज्ञान की जो पकड़ने की आत्मा का विस्तार है। व्यवस्था है, वह जो मेथडॉलाजी है, उसकी जो विधि है, वह पदार्थ यह जो इक्कीस ग्राम की कमी हुई है, यह आत्मा की कमी नहीं | को ही पकड सकती है. वह आत्मा को नहीं पकड सकती। है, प्राणवायु की कमी है। आदमी जैसे ही मरता है, उसके शरीर के | | पदार्थ वह है, जिसे हम विषय की तरह, आब्जेक्ट की तरह देख भीतर जितनी प्राणवायु थी, वह बाहर हो जाती है। और आपके सकते हैं। और आत्मा वह है, जो देखती है। विज्ञान देखने वाले को भीतर काफी प्राणवायु की जरूरत है, जिसके बिना आप जी नहीं | | कभी नहीं पकड़ सकता; जो भी पकड़ेगा, वह दृश्य होगा। जो भी सकते। आक्सीजन की जरूरत है भीतर, जो प्रतिपल जलती है और | पकड़ में आ जाएगा, वह देखने वाला नहीं है; वह जो दिखाई पड़ 414

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