Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 442
________________ गीता दर्शन भाग- 58 सरलता है, जैसा हम सोचते हैं। लेकिन सरलता लगती है, उसके खाली, जीवन के सारे बोझ से खाली, रिक्त, शून्य। अब उसने जो कुछ कारण जरूर होने चाहिए। भी जाना, सब पटक दिया। अब चेतना अकेली रह गई है। एक तो बच्चा क्षण-क्षण जीता है। यह बात सच है। न तो अतीत | ऐसा समझें कि एक दर्पण है। दर्पण पर कोई आता है, तो चित्र का बहत हिसाब रखता है, क्योंकि हिसाब रखने के लिए जितनी बनता है। ठीक ऐसे ही हमारे भीतर प्रज्ञा है, बुद्धि है। उस पर सब बुद्धि चाहिए, वह उसके पास नहीं है। न भविष्य की योजना बनाता | चित्र बनते हैं। संसार भर के चित्र बनते हैं। जो भी सामने आता है, है, क्योंकि भविष्य की योजना के लिए जितनी समझ चाहिए, वह | जाता है, उसके चित्र बनते हैं। भी उसके पास नहीं है। वह क्षण-क्षण जीता है, जैसे पशु जीते हैं। लेकिन दर्पण दो तरह के हो सकते हैं। एक दर्पण तो होता है अभी जी लेता है। फोटोग्राफर के कैमरे में, जहां प्लेट लगी है। वह भी दर्पण है, इसलिए बच्चा आप पर नाराज हो जाता है, घड़ीभर बाद भूल | | लेकिन खास तरह का दर्पण है। उसमें खास रासायनिक तत्व लगाए जाता है। इसलिए नहीं कि उसको क्रोध नहीं था, बल्कि इसलिए कि | गए हैं। उसमें जो प्रतिबिंब बनेगा, वह बनेगा ही नहीं, पकड़ भी अभी हिसाब रखने वाला मन विकसित नहीं हुआ है। घड़ीभर पहले| लिया जाएगा। वह जो फोटोग्राफर की प्लेट है, एक दफा काम में नाराज हो लिया, घड़ीभर बाद हंसने लगा। वह भूल गया कि नाराज | | आ सकती है। उसमें फिर जो पकड़ गया, तो प्लेट खराब हो गई। हुआ था, अब हंसना नहीं चाहिए इस आदमी के साथ। इन दोनों | अब उसका दुबारा उपयोग नहीं हो सकता। के बीच संबंध बिठालने की बुद्धि अभी विकसित नहीं हुई है। | दर्पण है, उसका हजार बार उपयोग हो सकता है। क्योंकि दर्पण तो बच्चे की सारी सरलता उसके क्षण-क्षण जीने, बुद्धिहीन | | | में प्रतिबिंब बनता है, लेकिन पकड़ता नहीं है। आप गए, प्रतिबिंब होने, अज्ञान में होने के कारण है। ऐसी सरलता से कोई परमात्मा | चला गया, दर्पण फिर खाली हो गया। को नहीं पा सकता। एक और सरलता है, जो जीवन के सारे । आदमी अपने मन का दो तरह से उपयोग कर सकता है, अनुभव को जानने के बाद, इस अनुभव को उतारकर रख देने से | फोटो-प्लेट की तरह या दर्पण की तरह। जो आदमी फोटो-प्लेट उपलब्ध होती है। की तरह अपने मन का उपयोग करता है. वह सब चीजों को संगहीत जिंदगी एक बोझ है अनुभव का। बच्चा बड़ा हो रहा है, अनुभव करता जाता है, पकड़ता जाता है। जिंदगी में जो भी होता है, सब इकट्ठा कर रहा है। एक दिन ऐसी घड़ी अगर आपके जीवन में आ इकट्ठा करता जाता है-कूड़ा-करकट, गाली-गलौज; किसने जाए कि आपको पता लगे, यह सारा अनुभव व्यर्थ है। यह जो क्या कहा, क्या नहीं कहा; क्या पढ़ा, क्या सुना-जो भी होता है, जाना, जो सीखा, जो जीया, सब व्यर्थ है, कचरा है। और आप इस सब इकट्ठा करता जाता है। सारे कचरे को पटक दें अपने सिर से नीचे, तो आपको एक नया यही इकट्ठा बोझ भीतर आत्मा का बुढ़ापा हो जाता है। यह जो बचपन मिलेगा। आप फिर वैसे सरल हो जाएंगे, जो निर्भार होने बोझ है, यही बुढ़ापा है आध्यात्मिक अर्थों में। शरीर हो सकता है से कोई भी हो जाता है। आपका जवान भी हो। लेकिन यह जो बोझ है भीतर, यही वह सरलता जीसस का मतलब है, कि जो बच्चों की भांति सरल | आध्यात्मिक बुढ़ापा है। होंगे। बच्चों की भांति सिर्फ उदाहरण है। संत फिर से बच्चे की जिस दिन आपको यह समझ में आ जाता है कि मैं मन का एक भांति हो जाता है। या ठीक से हम कहें, तो संत सच में पहली बार | और तरह का उपयोग भी कर सकता हूं, मिरर लाइक, दर्पण की बच्चा होता है। क्योंकि कोई बच्चा बच्चा है नहीं। उसके भीतर सब | तरह; आप इस सारे बोझ को पटक देते हैं और खाली दर्पण हो जाते रोग छिपे हैं, जो बड़े हो रहे हैं। समय की देर है, सब रोग प्रकट हो | | हैं। यह जो खाली दर्पण हो जाना है, यह है बचपन आध्यात्मिक जाएंगे। रोग मौजूद हैं, उनका बीज तैयार है। सिर्फ पानी पड़ेगा, धूप | अर्थों में निबोझ, निर्भार। लगेगी और सब प्रकट हो जाएगा। __ जीसस इसकी बात कर रहे हैं। अगर आप ऐसे बच्चे हो सकते तो बच्चे की जो सरलता है, वह झूठी है। संत की सरलता ही हैं, तो परमात्मा को पाने के लिए और कुछ भी न करना पड़ेगा। सच्ची है। क्योंकि अब रोग छूट गए। अब भीतर कुछ बचा नहीं; इतना करना काफी है। संत खाली है। खालीपन सरलता है। अनुभव से खाली, ज्ञान से, लेकिन इसका मतलब यह हुआ कि बच्चे तो न पा सकेंगे।

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